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वैतालीय : द्वितीय अध्ययन - द्वितीय उद्देशक
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निषेधात्मक सूत्र देकर संयमी पुरुष की जीवननीति स्पष्ट कर दी है । वाचिक संयम के लिए तीन सूत्र दिये हैं
१ - संयमनिष्ठ मुनि विरुद्ध कथाकार न बने । २-संयमी साधु प्राश्निक न बने ।
३ -- संयमप्रिय श्रमण सम्प्रसारक न बने । मानसिक संयम के लिए एक सूत्र दिया है
१ - संयमी भिक्षु मामक - ममत्ववान न बने ।
प्रश्न होता है - संयमनिष्ठ जीवननीति के लिए ये चार निषेधात्मक सूत्र क्यों दिये गये ? इसका उत्तर हमें आगमों की गहराई में जाकर खोजना होगा । आगमों में साधु के लिए चार विकथाओं का निषेध है । वे विकथाएँ हैं -- (१) स्त्रीविकथा, (२) भोजनविकथा, (३) राजविकथा, (४) देशविकथा |
विकथा का अर्थ होता है- विरुद्धकथा, ऐसी कथा, जिससे कामोत्तेजना भड़के, भोजनलालसा बढ़े, जिससे युद्ध, हत्या, दंगा, लड़ाई या वैमनस्य बढ़े तथा देश-विदेश के गलत आचार-विचारों के संस्कारों का जनमानस में बीजारोपण हो । ये चारों विकथाएँ संयमविरुद्ध कथाएँ हैं, जो वाचिक संयम के लिए वर्जित की गई हैं । इसी प्रकार किसी व्यक्ति द्वारा इस प्रकार के लौकिक-सांसारिक वासना सम्बन्धी प्रश्नों --- जैसे कि मेरे देश में क्या होगा ? मेरे कितनी सन्तान होंगी ? अमुक वस्तु का भाव तेज होगा या मन्दा ? इत्यादि प्रश्नों का फल ज्योतिषी के समान न बताए । क्योंकि अगर इस प्रकार से प्रश्नों का फल बताने लगेगा तो साधक की आत्मसाधना खटाई में पड़ जाएगी । फिर बताने में कभी बताये गए से उलटा फल निकला तो प्रश्नकर्ता की श्रद्धा समाप्त हो जाएगी, उसकी दृष्टि में साधु का वचन असत्य ठहरेगा । स्वयं के सत्यमहाव्रत पर भी आँच आएगी । इन सब कारणों को लेकर वाणीसंयम की दृष्टि से यह सूत्र दिया कि संयमी साधु प्राश्निक न बने । इसी प्रकार संयमी साधु वर्षा तथा धनप्राप्ति के उपाय भी न बताए, न औषध, मंत्र - तंत्रादि बताए । क्योंकि ऐसा करने से आरम्भ - समारम्भ की वृद्धि होगी, तज्जनित हिंसा का भागी उपाय बताने वाला साधु भी बनेगा । साथ ही यदि साधु के द्वारा बताया हुआ कोई उपाय यथेष्ट फल न दे सका, तो उसके प्रति अविश्वास हो जाएगा। साधु के सत्यमहाव्रत पर भी आँच आएगी । इस प्रकार की दूकानदारी लगाने से साधु दुनियादार बन जाएगा, साधनाशील नहीं रह पाएगा । तथा मानसिक संयम के लिए शास्त्रकार ने बताया कि वह किसी भी वस्तु (चाहे वह धर्मोपकरण ही क्यों न हो ) पर ममत्व -- यह मेरी है, मैं इसका स्वामी हूँ, इस प्रकार का मेरापन न रखे । क्योंकि ममत्व होने में उसके वियोग में आर्तध्यान होगा, उसके न मिलने पर दुःख होगा, उसकी रक्षा की चिन्ता बढ़ेगी, उसके खत्म होने या चुराये
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