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सूत्रकृतांग सूत्र
नरकगति के सभी नारक एवं मनुष्यगति के सभी स्थिति एवं पद वाले मानवों का यही हाल समझ लेना चाहिए। सभी प्राणियों की स्थिति अस्थायी है । मृत्यु किसी के लिए भी रियायत नहीं करती ।
अगली गाथा में फिर शास्त्रकार कामासक्त एवं परिवारासक्त जीवों की अन्तिम दशा का वर्णन करते हैं---
मूल पाठ
कामेहिण संथवेहि गिद्धा कम्मसहा कालेण जंतवो । ताले जह बंधणच्चुए एवं आउक्खयंमि तुट्टती ||६||
संस्कृत छाया
कामेषु खलु संस्तवेषु गृद्धाः कर्मसहाः कालेन जन्तवः । तालं यथा बन्धनाच्च्युतमेवमायुः क्षये त्रुट्यति
||६||
अन्वयार्थ
( कामे हि ) विषय-भोगों की तृष्णा में (ण) एवं (संथवे हि ) माता - पिता, स्त्री, पुत्र आदि परिचितों में (गिद्धा ) आसक्त रहने वाले (जंतवो) प्राणी ( कालेज ) अवसर आने पर अर्थात् कर्मविपाक के समय (कम्मसहा ) अपने कर्मों का फल भोगते हुए (जह ) जैसे ( बंधणच्चुए) बन्धन से छूटा (टूटा हुआ, ( ताले) तालफल गिर जाता है, ( एवं ) इसी तरह ( आउक्खयंमि) आयु समाप्त होने पर ( तुट्टती ) मर जाते हैं ।
भावार्थ
विषय-भोगों की तृष्णा में, तथा माता-पिता, स्त्री, पुत्र आदि परिचितजनों में आसक्त रहने वाले प्राणी कर्मफल के उदय के समय ( अवसर आने पर ) अपने कर्मों का फल भोगते हुए आयु के टूटने पर ऐसे गिरते हैं ( मर जाते हैं), जैसे बन्धन से छूटा हुआ तालफल नीचे गिर जाता है ।
व्याख्या
काम-भोगों एवं परिचितों में आसक्त जीवों की दशा
मनुष्य पाँचों इन्द्रियों के विषयों के सम्पर्क में ज्यों-ज्यों आता है, त्यों-त्यों उसकी आसक्ति बढ़ती जाती है, इसी प्रकार माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी - पुत्र आदि परिचितजनों का भी ज्यों-ज्यों अधिकाधिक सम्पर्क बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों
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