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सूत्रकृतांग सूत्र स्वस्थ) होते हैं। परन्तु इस प्रकार के मताग्रही वे लोग ऐसी सिद्धि का ही मुख्यरूप से प्रतिपादन करके अपने-अपने आशय (मत) में आसक्त हैं।
व्याख्या स्वमतानुसारी सिद्धि में आसक्त सिद्धिवादी
__'इहमेगेसिमाहिय'-पूर्वगाथा में जिस भौतिक सिद्धि के प्ररूपकों का मत दिया गया है, उसी प्रसंग को लेकर शास्त्रकार इस गाथा में उन सिद्धिवादियों की प्ररूपणा की पद्धति बता रहे हैं। इसलिए उन्होंने कहा 'इहमेगेसिमाहिय-- इस संपार में कुछ लोग इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं । 'कुछ लोगों से' शास्त्रकार का संकेत उन लोगों से है, जो या तो पूर्वोक्त भौतिक अष्टसिद्धियों को प्राप्त कर लेने मात्र से सिद्धि मानते हैं या रसायनशास्त्र में पारंगत होने से रससिद्धि (पारद या स्वर्ण की सिद्धि) प्राप्त हो जाती है, ऐसा मानते हैं। इसीलिए कहा है ... 'तिहा य ते अरोगा य' तात्पर्य यह है कि पूर्वोक्त सिद्धिवादी अन्यदर्शनी कहते हैं कि हमारे दर्शन में बतायी हुई विधि के अनुसार अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति को इसी जन्म में ऐश्वर्यसूचक अष्टविध सिद्धि प्राप्त होती है और इसी जन्म के बाद सम्पूर्ण द्वन्द्वानिवृत्तिरूप मुक्ति प्राप्त होती है।
उनके कथन का आशय यह प्रतीत होता है कि हमारे मतानुसार अनुष्ठान करके व्यक्ति इस जन्म में अष्टविध सिद्धि प्राप्त कर लेता है, इसके साथ ही रसायनसिद्धि भी पा लेता है, जिसके फलस्वरूप उसका शरीर यहाँ पूर्ण आरोग्यसम्पन्न रहता है । 'अरोगा' और 'सिद्धा' के बाद 'य' शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ है, उसका अभिप्राय यह है कि पूर्वोक्त लौकिक सिद्धिप्राप्त व्यक्ति ही पारलौकिक सिद्धि (मुक्ति) प्राप्त करते हैं और पूर्वोक्त लौकिक आरोग्य-प्राप्त व्यक्ति ही यहाँ से विशिष्ट समाधियोगपूर्वक शरीर छोड़कर पारलौकिक आरोग्य प्राप्त करते हैं । यानी शारीरिक-मानसिक समस्त दु:खों, रोगों और द्वन्धों से रहित पूर्ण नीरोग हो जाते हैं। उन्हें फिर किसी प्रकार के दुःख का स्पर्श नहीं होता। इस प्रकार वे शैव आदि दार्शनिक अपनी सिद्धि का बखान करते हैं।
___सिद्धिभेव पुरोकाउं'-वे तथाकथित सिद्धिवादी इतना ही करके नहीं रह जाते। वे लोग अपने कार्य-कारणभाव से रहित कपोलकल्पित मान्यता को भोले लोगों के दिमाग में भरने के लिए अपने पूर्वोक्त युक्तिविरुद्ध मत में आसक्त होकर तथाकथित सिद्धि को ही आगे रख कर उसे ही सिद्ध करने के लिए नाना प्रकार की युक्तियाँ प्रस्तुत करते हैं। चाहे उनकी युक्तियाँ विविध प्रमाणों से खण्डित हो जाती हों, फिर भी वे अपनी युक्तियों से खींचतान करके इहलौकिक और पारलौकिक
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