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व्याख्या
अपने-अपने अनुष्ठान से ही मुक्ति : एक विश्लेषण
इस गाथा में शास्त्रकार ने अनेक मतवादियों की मनोवृत्ति का परिचय दिया है, जो अपने-अपने मत का एकान्त आग्रह रखते हैं और आम जनता को आकर्षित करने के लिए प्रायः यही कहा करते हैं- 'हमारे मत की शरण में आने से, हमारे मत के अनुयायी बनने से या हमारे मत में प्रतिपादित अनुष्ठान करने से, अथवा हमारे मत के गुरुओं की चरणसेवा से अथवा हमारे मत की दीक्षा ग्रहण करने से मनुष्य सिद्धि-मुक्ति प्राप्त कर सकता है, अन्य प्रकार से नहीं । आशय को व्यक्त करते हुए शास्त्रकार कहते हैं— 'नए सए उद्याने सिद्धिमेव न अन्नहा ।' तात्पर्य यह है कि कृतवादी शैव' कहते हैं हमारे मत में दीक्षा ग्रहण करने और गुरु चरणों की सेवा करने से ही मनुष्य मुक्ति प्राप्त करता है । सांख्यमतवादी * एकदण्डी लोग पच्चीस तत्त्वों के ज्ञान से मुक्ति बताते हैं । आत्मा के बुद्धि, सुख, दु:ख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार, इन नौ गुणों का अत्यन्त उच्छेद करके आत्मा का अपने शुद्ध रूप में लीन हो जाना मोक्ष है, यह वैशेषिक मानते हैं । वेदान्तदर्शनी कहते हैं-' ध्यान, अध्ययन और समाधिभार्ग के अनुष्ठान से ही सिद्धि होती हैं ।' बौद्धमतवादी कहते हैं - 'सब कुछ क्षणिक है, सभी कुछ हेय है, सभी कुछ दुःखमय है, सब कुछ शून्य है, ऐसी भावना करने वालों को मोक्ष-निर्वाण प्राप्त होता है ।' योगमतवादी कहते हैं - ' हमारे शास्त्रानुसार यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का अनुष्ठान - आचरण करने से मुक्ति प्राप्त होती है।' इसी तरह दूसरे दार्शनिक भी अपने-अपने दर्शन से मोक्षमार्ग का प्रतिपादन करते हैं । तथा वे कहते हैं -- समस्तद्वन्द्रनिवृत्तिरूप मोक्ष की प्राप्ति से पूर्व हमारे दर्शन के अनुसार अनुष्ठान करने से इसी जन्म में ऐश्वर्यसूचक अष्टसिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं । वे अष्टसिद्धियाँ इस प्रकार हैं-अणिमा, महिमा,
१. 'दीक्षात एव मोक्षः '
२. 'पंचविंशति तत्त्वज्ञो यत्र कुत्राश्रमे रतः ।
जटी मुंडी शिखी वाऽपि मुच्यते नात्र संशयः ॥'
३. 'नवानामात्मगुणानामुच्छेदः मोक्षः'
-प्रशस्तपादभाष्य
४. योगाभ्यास के प्रभाव से योगियों को आठ सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । वे इस
प्रकार हैं
अणिमा, महिमा चैव गरिमा, लघिमा तथा ।
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्टसिद्धयः ॥
सूत्रकृतांग सूत्र
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