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सूत्रकृतांग सूत्र इतना ज्ञान--पूर्णज्ञान कहाँ कि वे सारे संसार को देख सकें या यथायोग्य पदार्थों की रचना कर सकें। इसलिए ब्रह्मा ही इस विशाल ब्रह्माण्ड के रचयिता हो सकते हैं। वे अपनी सन्तान की तरह सृष्टि को उत्पन्न करते हैं। इसीलिए उन्हें जगत्पितामह या प्रजापति कहा है। सृष्टि के पूर्व में--जगत् की आदि में---वही एक थे--उन्होंने प्रजापतियों को बनाया और प्रजापतियों ने क्रमश: इस सम्पूर्ण जगत् को उत्पन्न किया। जैसे कि उपनिषद् में कहा है---
'हिरण्यगर्भः समवर्तताऽग्रे, स एक्षत, तत्त जोऽसृजत' अर्थात्----'सृष्टि से पहले हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा) अकेला ही था। उसने देखा, और फिर उसने तेज की सृष्टि की।' ऐसे ही एक वैदिक पुराण में कहा है--
ततः स्वयम्भूर्भगवान् सिसृक्षविविधाः प्रजाः।
अप एव ससर्जादौ, तासु बीजमवासृजत् ।। उसके बाद विविध प्रजाओं की सष्टि (सर्जन) करने के इच्छुक भगवान् स्वयम्भू-ब्रह्मा ने सबसे आदि (प्रारम्भ) में पानी बनाया, उसमें बीज उत्पन्न किया।
ब्रह्माजी ने यह जगत् किस विधि और क्रम से बनाया, इस सम्बन्ध में दूसरे पौराणिकों का विचित्र मत इस प्रकार है--
आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् अप्रतक्यमविज्ञ यं प्रसुप्तमिव सर्वतः तस्मिन्नेकार्णवीभूते नष्टस्थावरजंगमे नष्टामरनरे चैव, प्रनष्टे राक्षसोरगे केवलं गह्वरीभूते, महाभूतविजिते अचिन्त्यात्मा विभुस्तत्र शयानस्तप्यते तपः ॥३॥ तत्र तस्य शयानस्य नाभः पद्म विनिर्गतम् । तरुणार्कबिम्बनिभं, हृद्यं काञ्चनकर्णिकम् ॥४॥ तस्मिन् पद्म भगवान् दण्डयज्ञोपवीतसंयुक्तः । ब्रह्मा तत्रोत्पन्नस्तेन जगन्मातरः सृष्टाः ॥५॥ अदितिः सुरसन्धानां, दितिरसुराणां मनुमनुष्याणाम् । विनता विहंगमानां माता विश्वप्रकाराणाम् ॥६॥ कद्र : सरीसृपानां, सुलसा माता च नागजातीनाम् ।
सुरभिश्चतुष्पदानामिला पुनः सर्वबीजानाम् ॥७॥ अर्थात्-~-पहले यह जगत् घोर अन्धकारमय था, बिलकुल अज्ञात, अविलक्षण, अतयं तथा अविज्ञ य ! मानो वह सर्वथा सोया हुआ था। वह केवल एक समुद्र
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