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________________ सूत्रकृतांग सूत्र मूल पाठ पुत्त पिया समारब्भ, आहारेज्ज असंजए । भुंजमाणो य मेहावी, कम्मुणा नोवलिप्पइ ॥२८।। संस्कृत छाया पुत्र पिता समारभ्याहारयेदसंयतः । भुजानश्च मेधावी कर्मणा नोपलिप्यते ।।२८।। अन्वयार्थ (असंजए) संयमविहीन (पिया) पिता (पुत्त) अपने पुत्र को (समारब्भ) मारकर -(आहारेज्ज) खा ले तो (भुंजमाणो) खाता हुआ भी वह पिता (मेहावी) तथा मेधावी साधु भी (कम्मुणा) कर्म से (नोवलिप्पइ) उपलिप्त नहीं होता। भावार्थ जिस तरह दुष्काल आदि विपत्ति के समय कोई असंयमी पिता अपने पुत्र को मारकर उसका मांस खाता है, तो वह पुत्र का मांस खाकर भी कर्म से लिप्त नहीं होता, इसी तरह रागद्वेषरहित मेधावी साध भी मांस खाता हआ कर्म से लिप्त नहीं होता। व्याख्या भावशुद्धि से कर्मबन्ध नहीं : बौद्ध-प्रदत्त दृष्टान्त इस गाथा में भावशुद्धिपूर्वक हिंसा आदि प्रवृत्ति से कर्मबन्ध का अभाव सिद्ध करने के लिए शास्त्रकार ने बौद्धों द्वारा प्रस्तुत दृष्टान्त दिया है। दृष्टान्त का आशय स्पष्ट है। जैसे कोई रागद्वेष-रहित असंयमी गृहस्थ किसी बड़ी विपत्ति के समय अपने उद्धारार्थ उदरपूर्ति हेतु अपने पुत्र को मार कर उसका भक्षण कर लेता है, तो भी वह कर्मबन्ध से लिप्त नहीं होता, क्योंकि पुत्र पर उसका कोई द्वेष नहीं है।' इसी तरह रागद्वषरहित बुद्धिमान शुद्धाशय साधु भी किसी घोर संकट १. संयुत्तनिकाय में इस प्रकार की एक गाथा मिलती है कि शरीर-शक्ति बढ़ाने के उद्देश्य से एक पिता अपने पुत्र का वध करके उसका मांस भक्षण कर लेता है। फिर भी बौद्धधर्म की दृष्टि से वह पिता वधक (हिंसक) नहीं होता। यह आपपातिक नियम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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