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सूत्रकृतांग सूत्र
जैसे स्वयं अन्धा व्यक्ति मार्ग में दूसरे अन्धे को ले जाता हुआ जहाँ जाना है, वहाँ से दूर, बहुत दूर देश में चला जाता है । अथवा वह (काँटे, कंकड़, जंगली हिंसक जन्तुओं से भरे) उजड़ रास्ते पर चढ़ जाता है, अथवा ठीक मार्ग को छोड़कर दूसरे रास्ते पर चला जाता है ।
व्याख्या
अन्धे के पीछे अन्धा : विनाश का धन्धा
अज्ञानवादियों की अनिष्ट दशा को समझाने के लिए शास्त्रकार दो दृष्टान्तों द्वारा वस्तुतत्त्व अभिव्यक्त करते हैं
(१) एक घोर जंगल है । उसमें हिंसक जंगली जन्तुओं का भय है । एक पथिक घूमता- घामता रास्ता भूल गया, उसे यह पता ही नहीं चल रहा था कि मैं किस दिशा में जा रहा हूँ ? वह दिग्मूढ एवं व्याकुल होकर इधर-उधर देख रहा था कि इतने में एक दूसरा पथिक आता हुआ दिखाई दिया, वह भी पथभ्रष्ट और दिशामूढ़ था, परन्तु वाचाल होने के कारण उक्त व्याकुल पथिक से कहा -'मेरे पीछे चले आओ, मैं तुम्हें सही-सलामत गन्तव्य स्थान पर पहुँचा दूंगा, मैंने सब रास्ता देखा है । वह दिशामूढ़ भयभ्रान्त बेचारा पथिक इस नये वाचाल पथिक के चक्कर में आकर उसके पीछे-पीछे चलने लगा । नतीजा यह हुआ कि उस मार्ग भ्रष्ट एवं मार्ग से अनभिज्ञ पथिक के पीछे चलने से वह भोला पथिक दुःखी हुआ । साथ में जो मार्गदर्शक नेता बना था, वह भी मार्ग का जानकार न होने से अत्यन्त दु:खी हुआ। दोनों एक-दूसरे को कोसने लगे। आवाज सुनकर एक भयानक जंगली जानवर आ गया । उसने दोनों पर झपटकर वहीं दोनों का काम तमाम कर
डाला ।
यह एक रूपक है । यही हाल सत्पथ से अनभिज्ञ अज्ञानवादी गुरु का है, उसके पीछे-पीछे यदि कोई दिशामूढ़ भयभ्रान्त पथिक उसके बहकावे में आकर चल देता है तो आखिर दोनों इस घोर संसाररूपी जंगल में भटकते रहते हैं और कहीं न कहीं भयंकर दुःख एवं मरण की चपेट में आ जाते हैं ।
( २ ) इसी प्रकार एक दूसरा दृष्टान्त देकर इस बात को समझाया गया है— एक अन्धा था, वह कहीं चला जा रहा था । मार्ग में उसे एक दूसरा अन्धा मिला । वह वाचाल था । पहले वाले अन्धे से उसने पूछा 'कहाँ जा रहे हो ?' उसने किसी नगर का नाम लिया, तो दूसरा वाचाल अन्धा तपाक से बोला- 'अरे, पहले तुमने क्यों नहीं कहा ? तुम तो उलटे चल रहे हो । मेरे साथ चले आओ । मैं तुम्हें ठीक मार्ग से सही-सलामत वहीं पहुँचा दूंगा ।' पहला अन्धा भुलावे में
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