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सूत्रकृतांग सूत्र
भावार्थ जैसे म्लेच्छपुरुष अम्लेच्छ आर्यपुरुष के कथन का अनुवाद करता है, किन्तु वह उस भाषण का अभिप्राय (हेतु) नहीं जानता, वह तो केवल उस भाषण का अनुवादमात्र करता है, वैसे ही सम्यगज्ञान से विहीन ब्राह्मण
और श्रमण अपने-अपने ज्ञान को कहते हए भी उसके निश्चितार्थ को नहीं जानते । वे तो पूर्वोक्त म्लेच्छों की तरह सम्यक्बोध से रहित हैं ।
व्याख्या
अज्ञानियों को तोतारटन
इन दो गाथाओं में अज्ञानियों की म्लेच्छ के साथ उपमा देते हुए कहा गया है कि वे पण्डितम्मन्य अज्ञानवादी जो कुछ ज्ञान बधारते हैं, वह उसी तरह का तोतारटन है। जैसे आर्यों की भाषा से अनभिज्ञ म्लेच्छ आर्यपुरुष के कथन को मात्र दोहरा देता है । वह उस भाषा में कही हुई बात का रहस्य या कारण नहीं बता सकता। जैसे तोते को 'राम-राम' या 'नमस्ते' कहना सिखा दिया जाता है और वह इन वाक्यों को बार-बार दोहराता रहता है, परन्तु वह उक्त शब्दों का अर्थ बिलकुल नहीं जानता, वह मालिक के सिखलाये हुए शब्दों को रटकर उन्हें दोहराता रहता है । जैसे आर्यों की भाषा से अनभिज्ञ कोई म्लेच्छपुरुष म्लेच्छ भाषा को न जानने वाले आर्यपुरुष के शब्दों को केवल दोहरा देता है, या अर्थज्ञानशून्य उसकी भाषा का अनुवाद मात्र कर देता है परन्तु उसने किस विवक्षा से यह बात कही है, उसका अभिप्राय वह भली-भांति नहीं जानता।
यही बात सम्यग्ज्ञान से शून्य अज्ञानसम्पन्न तथाकथित ब्राह्मण-श्रमणों पर भी लागू होती है कि वे अपने-अपने मत की पोथियों में लिखे ज्ञान को लोगों के सामने बार-बार दोहराते रहते हैं, साथ ही उस ज्ञान के प्रमाणभूत होने की दुहाई भी देते रहते हैं, लेकिन परस्पर विरुद्ध और विसंगत बातें कहने के कारण साफ प्रतीत होता है कि वे केवल तथाकथित शास्त्रों या अपने माने हुए शास्त्रों के वचनों को दोहरा रहे हैं, उनका जो निश्चित-सिद्धान्तसम्मत अर्थ है, उसे वे नहीं जानते । वे उसी म्लेच्छ या तोते की तरह अबोध और अनुवादकमात्र हैं। इसीलिये शास्त्रकार ने दृष्टान्त का उपसंहार करते हुए कहा है-निच्छयत्थं न याणंति मिलक्खु ब्व ।
अब अगली गाथा में अज्ञानवादियों का मन्तव्य प्रस्तुत करते हुए उनकी अज्ञानता सिद्ध करते हैं ----
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