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समय : प्रथम अध्ययन- -- प्रथम उद्देशक
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वास्तव में समीपता, अतिदूरी आदि बाधकों से रहित प्रत्यक्ष जब किसी वस्तु को नहीं जानता है, तभी योग्य वस्तु के अभाव का बोध होता है । (१) अत्यन्त दूरी होने से, ( २ ) अत्यन्त समीपता होने से, (३) किसी इन्द्रिय का घात हो जाने से, (४) मन के अव्यवस्थित (अन्यमनस्क) होने से, ( ५ ) पदार्थ के सूक्ष्म होने से, (६) दीवार आदि का व्यवधान ( ओट) होने से, (७) अभिभव होने ( प्रभाव दब जाने ) से और ( 5 ) सजातीय पदार्थों के सम्मिश्रण होने से प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं हो पाता । '
तात्पर्य यह है कि पदार्थ विद्यमान होते हुए भी पूर्वोक्त कारणों से प्रत्यक्ष द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता । अति दूरी के कारण - आकाश में विद्यमान पक्षी अत्यन्त दूरी के कारण नहीं दिखाई दे सकता, मगर इतने मात्र से पक्षी का अभाव नहीं हो जाता । अतिदूरी रूपी बाधक कारण ( प्रतिबन्धक) के मौजूद रहते प्रत्यक्ष प्रवृत्त नहीं हो पाता, किन्तु इतने भर से वह (प्रत्यक्ष की अप्रवृत्ति ) वस्तु के अभाव का निर्णायक नहीं हो सकता । अति सामीप्य के कारण - कभी-कभी अत्यन्त निकट होने से वस्तु विद्यमान होने पर भी प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देती, जैसे नेत्रों में लगा हुआ अंजन दिखाई नहीं देता, किन्तु न दिखने मात्र से ही उसका अभाव नहीं हो जाता । इन्द्रिय भंग होने से -- किसी इन्द्रिय के नष्ट हो जाने या कमजोर हो जाने से भी व्यक्ति प्रत्यक्ष देख-सुन नहीं सकता । जैसे अंधा या बहरा हो जाने से मनुष्य रूप को देख नहीं सकता या शब्द को सुन नहीं सकता किन्तु इतने मात्र से रूप अथवा शब्द का अभाव नहीं होता । मन की अस्थिरता से -- जब मन ग्रा विषय की ओर नहीं होता, कहीं अन्यत्र संलग्न होता है तो प्रचण्ड प्रकाश के होते हुए भी, घड़ा सामने या पास में होने पर भी उसका प्रत्यक्ष नहीं होता । सूक्ष्मता के कारण -- चित्त की एकाग्रता होने पर भी सूक्ष्म पदार्थ दिखाई नहीं देता । जैसे परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होने से दिखाई नहीं देता । किन्तु इससे पर - माणु का अभाव सिद्ध नहीं हो सकता । व्यवधान के कारण - किसी दीवार, पर्दे या कपड़े आदि का व्यवधान ( ओट या आड़ ) होने से भी पदार्थ प्रत्यक्ष नहीं होता । जैसे पर्दे की ओट में रानी बैठी है, दिखाई नहीं देती, किन्तु न दिखाई देने से रानी नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता । अभिभव के कारण - अभिभव ( दब जाने, हतप्रभ हो जाने के कारण भी प्रत्यक्ष नहीं होता । जैसे दिन में सूर्य की प्रभा से चन्द्रमा, तारे, ग्रह आदि दब जाने के कारण दिखाई नहीं देते । परन्तु इतने
१. " अतिदूरात्, सामीप्यादिन्द्रियघाताऽऽत्मनोऽनवस्थानात् । सौक्ष्म्यात् व्यवधानादभिभवात् समानाभिहाराच्चेति ॥
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