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सूत्रकृतांग सूत्र चार्वाक-एक-एक भूत से चैतन्य की उत्पत्ति मानने से यह दोष आता है, किन्तु पाँचों भूतों के मिल जाने से चैतन्य की उत्पत्ति है, यह माना जाय तो हमारे सिद्धान्त में कोई दोष नहीं आता। जैसे अलग-अलग जौ का आटा, या गुड़ पड़ा हो तो उसमें मादक शक्ति नहीं पैदा होती किन्तु सभी वस्तुओं के मिल जाने पर मादक शक्ति पैदा होती है।
जैन- यह कथन भी युक्तिसंगत नहीं है। क्योंकि हम आपसे पूछते हैं कि पंचमहाभूतों का वह संयोग, जिसके बल पर आप चैतन्य की उत्पत्ति मानते हैं, भूतों से भिन्न है या अभिन्न ? यदि भिन्न मानें तब तो पाँच भूतों से अतिरिक्त संयोग नामक पदार्थ को स्वीकार करना होगा, जो आपके सिद्धान्त के प्रतिकूल है।
__इसके अतिरिक्त हम पूछते हैं कि पंच महाभूतों का संयोग प्रत्यक्ष से ग्रहण होता है अथवा अनुमान आदि अन्य प्रमाणों से ? प्रत्यक्ष से तो उस अतीन्द्रिय पंचभूत संयोग का ग्रहण होना असंभव है। अतीन्द्रिय वस्तु कदापि चक्षु के द्वारा गृहीत नहीं हो सकती। किसी अन्य प्रमाण से उक्त संयोग का ग्रहण होता है, यह कथन भी यथार्थ नहीं है। क्योंकि प्रत्यक्षातिरिक्त अन्य प्रमाण या तो अनुमान होगा अथवा आगम होगा । अनुमान से आप पंचमहाभूत संयोग का ग्रहण कर नहीं सकते, क्योंकि अनुमान हमने पहले ही भूत चैतन्यवाद का खण्डन कर दिया है। अतः उक्त संयोग को ग्रहण करने वाले अनुमान प्रमाण से अतिरिक्त आत्मा की सिद्धि नहीं हो सकती है । आगम प्रमाण से भी उक्त संयोग का ग्रहण आप कर नहीं सकते, क्योंकि आप तो आगम (आप्त = ईश्वर) को मानते ही नहीं है, अतएव आगम प्रमाण से भी यह सिद्ध नहीं हो सकता। और फिर आप एकमात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को ही मानते हैं। अनुमान और आगम इन प्रमाणों को तो आप मानते ही नहीं है, तब इन प्रमाणों का प्रयोग करके उक्त संयोग को ग्रहण कैसे कर सकेंगे ?
____ अगर उस संयोग को भूतों से अभिन्न कहते हैं, तब हम पूछते हैं कि प्रत्येक भूत चेतन है या अचेतन ? यदि प्रत्येक भूत को चेतन कहें तो एक ही इन्द्रिय की सिद्धि होगी, विभिन्न विषयों को ग्रहण करने वाली पाँच इन्द्रियों की सिद्धि नहीं हो सकेगी। ऐसी दशा में पंचभूतों के समुदाय रूप शरीर का चैतन्य ५ प्रकार का हो जाएगा। क्योंकि शरीर तो पंचभूत समुदायरूप है अतः पृथ्वी अंश विषयक ज्ञान घ्राणजन्य होने से अतिरिक्त होगा, चक्षु आदि से जन्य ज्ञान उससे भी अतिरिक्त होगा । यह महान आश्चर्य की बात है।
- यदि प्रत्येक भूत अचेतन है, ऐसा माने तो पूर्वोक्त दोषापत्ति आयगी। एकएक भूत में चैतन्य नहीं है तो उसके समुदाय में चैतन्य कहाँ से आ जाएगा? जैसे
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