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सूत्रकृतांग सूत्र
अन्वयार्थ (एत्थवि णिग्गंथे) जो गुण भिक्ष में बताये गये हैं, वे सब यहाँ निर्ग्रन्थ में भी होने चाहिए । उन गुणों के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट गुण निम्रन्थ में और होने चाहिए। वे ये हैं -- (एगे) द्रव्य से सहायक से रहित एकाकी और भाव से रागद्वषादि से रहित एकाकी आत्मा, (एगविऊ) एकवेत्ता हो, अर्थात् जो यह भली-भांति जानता हो कि आत्मा अकेला ही परलोक में जाता है। (बुद्ध) जो वस्तुस्वरूप को जानता हो, (सछिन्नसोए। जिसने आस्रवद्वारों को रोक दिया है, (सुसंजते) जो बिना प्रयोजन अपने शरीर की क्रिया नहीं करता है अथवा जो अपनी इन्द्रिय और मन पर संयम रखता है । (सुसलिए) जो पाँच प्रकार की समितियों से युक्त है, (सुसामाइए) जो शत्र और मित्र पर समभाव रखता है, (आयवायपत्त) जो आत्मा के सच्चे स्वरूप को जानता है, (विऊ) जो समस्त पदार्थों के स्वभाव को जानता है, (दुहओ वि सोयपलिच्छिन्ने) जिसने द्रव्य और भाव दोनों ही प्रकार से संसार में आगमन के स्रोत (मार्ग) को बन्द कर दिया है, (णो पूयासक्कारलाभट्ठी) जो पूजा, सत्कार और अर्थादि के लाभ की इच्छा नहीं रखता है, (धम्मट्ठी) किन्तु एकमात्र धर्म की ही इच्छा रखता है, (धम्मविऊ) जो धर्म को जानता है, (णियागपडिवन्न) जो मोक्षमार्ग को प्राप्त है, (समियं चरे) समभाव से विचरण करता है, (दंते दविए वोसट्ठकाए) उक्त गुणों से युक्त जो पुरुष जितेन्द्रिय, मोक्षगमन के योग्य है तथा शरीर पर से आसक्ति हटा चुका है, (णिग्गंथेत्ति वच्चे) उसे निर्ग्रन्थ कहना चाहिए।
(से एवमेव जाणह जमह) अतः आप लोग इसी तरह समझें, जैसा हमने कहा है (भयंतारो) क्योंकि भय से जीवों की रक्षा करने वाले सर्वज्ञ तीर्थकर आप्तपुरुष अन्यथा नहीं कहते हैं।
भावार्थ पूर्वसूत्र में भिक्ष के जितने गुण बताये हैं, वे सभी यहाँ निर्ग्रन्थ में भी होने चाहिए। इसके सिवाय यहाँ वर्णित कुछ विशिष्ट गुण भी निर्ग्रन्थ में होने आवश्यक हैं। जो साधक द्रव्य से सहायकरहित अकेला है, तथा भाव से रागद्वषरहित एकाकी आत्मा है, तथा यह आत्मा परलोक में अकेला ही जाता है, इस बात को भली-भाँति जानता (एकवेत्ता) है, जो वस्तुस्वरूप को जानता है, जिसने आस्रवद्वारों को रोक दिया है। जो प्रयोजन के बिना अपने शरीर की कोई क्रिया नहीं करता है, अथवा शरीर के अंगोपांगों, इन्द्रियों या मन को नियन्त्रण (संयम) में रखता है, जो पाँच समितियों से युक्त होकर शत्र-मित्र पर समभाव रखता है, जो आत्मा के सच्चे स्वरूप को जानता है, जो समस्त पदार्थों के स्वरूप का ज्ञाता, विद्वान् है, जिसने संसार में आगमन के स्रोत (मार्ग) को द्रव्य-भाव दोनों प्रकार से बन्द कर
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