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सूत्रकृतांग सूत्र
गये हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय । इन्हा ६ पदार्थों में संसार की सभी वस्तुएँ आ गई हैं । द्रव्य नौ हैं---पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा , आत्मा और मन । पृथ्वी आदि के गुण या लक्षण न्यायदर्शन की तरह माने गये हैं । जीवों का जब कर्मफल भोगने का समय आता है, तब महेश्वर को उस भोग के अनुकूल सृष्टि रचने की इच्छा होती है। इस इच्छा के अनुसार जीवों के अदृष्टबल से वायु के परमाणुओं में हलचल होती है। इनमें संयोग होता है । दो परमाणुओं के मिलने से द्व यणु क, तीन द्वयणुक से त्रसरेणु। इसी क्रम से एक महावायु उत्पन्न होता है, उसी वायु में परमाणुओं के परस्पर संयोग से जलद यणुक त्रसरेणु आदि क्रम से महाजलनिधि उत्पन्न होता है । जल में पृथ्वी के परमाणुओं के संयोग से व यणुकादि क्रम से महापृथ्वी,' तथा उसी जलनिधि में तेजस् परमाणुओं के परस्पर संयोग से हु यणुकादि क्रम से महातेजोराशि उत्पन्न होती है । इस प्रकार चारों महाभूत उत्पन्न होते हैं, यही वैशेषिकों का परमाणुवाद है । अदृष्ट में धर्म-अधर्म दोनों का समावेश है। धर्म उसे कहा गया है, जिससे पदार्थों का तत्त्वज्ञान होने से मोक्ष होता है। विशेषतः वैशेषिकदर्शन ने बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, धर्म, अधर्म, ममत्व, भावना नामक संस्कार और द्वष, आत्मा के इन नौ गुणों का अत्यन्त उच्छेद हो जाना मोक्ष माना है । यह विचित्र मान्यता है कि मोक्ष में आत्मा के गुणों का सर्वथा नाश हो जाता है, एक प्रकार से जड़ीभूत बन जाता है आत्मा ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि वैशेषिकदर्शन में कोई कर्म-बन्धन की या उससे मुक्त होने की प्रक्रिया नहीं बताई गई है। केवल परमेश्वर पर सारा भार डाल दिया गया है, जीवों के अदृष्ट के अनुसार कर्मफल भोग कराने का । विशेषतः तत्त्वज्ञान से ही मुक्ति बता दी है और अहिंसादि का पालन, त्याग आदि की क्रिया कतई नहीं बताई गयी है । यही मिथ्यात्व का कारण है।
अब लीजिए नैयायिकों को । न्यायदर्शन में १६ तत्त्व माने गये हैं और उनके तत्त्वज्ञान से ही मोक्ष प्राप्ति मानी गयी है । इनके मत में ईश्वर को देव मानते हैं।
१. पृथ्व्यपतेजोवाय्वाकाशकालोदिगात्मामनः इति द्रव्याणि।
-- वैशेषिक सूत्र १।११।४ २. प्रमाण, प्रमेय, संशय-प्रयोजन-दृष्टान्त-सिद्धान्तावयव-तर्क-निर्णय-वाद-जल्पवितण्डा हेत्वाभास-छल-जाति-निग्रह स्थानाना तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसाधिगम ।
-न्यायसूत्र १।१।१।३ अर्थात् प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति तथा निग्रहस्थान इन सोलह तत्त्वों के ज्ञान से मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
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