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सूत्रकृतांग सूत्र
तीथिकों के एकान्तवादी दर्शनों को गुण-दोष विचार के सहित भली-भांति जानता हुआ पुरुष उनमें श्रद्धा नहीं करता। तेरहवें अध्ययन में कहा गया है कि शिष्य के गुण-दोषों को जानने वाला तथा सद्गुणों में प्रवृत्त साधु ही स्वप रकल्याणकर्ता होता है । चौदहवें अध्ययन में यह कथन है कि जिसका अन्तःकरण प्रशस्तभावों से भावित होता है, वही निःशंक तथा शान्त होता है । पन्द्रहवें अध्ययन में बताया गया है कि शास्त्रोक्त चारित्र का पालन करने वाला साधु मोक्ष-साधक होता है ।
संक्षेप में, इस अध्ययन में यह बताया गया है कि जो समस्त पापकर्मों से विरत है, राग-द्वेष-कलह-अभ्याख्यान-पैशुन्य-परनिन्दा-अरति-रति -मायामृषावादमिथ्यादर्शनशल्य से रहित है, समितियुक्त है, ज्ञानादि गुण सहित है, सर्वदा संयम में प्रयत्नशील है, क्रोध-अभिमान से दूर है, वह माहण है। इसी तरह जो अनासक्त, निदानरहित, कषायमुक्त, हिंसा-असत्य-अब्रह्मचर्य-परिग्रह से रहित है, वह श्रमण है। जो अभिमानरहित, विनयसम्पन्न, परीषहों और उपसर्गों पर विजय प्राप्त करने वाला, आध्यात्मिक वृत्तियुक्त है, परदत्तभोजी है, वह भिक्षु है। जो ग्रन्थ-रहित (परिग्रहादि विरत) एकाकी है, एकविदु (एकमात्र आत्मा का ही ज्ञाता) है, पूजासत्कार का अभिलाषी नहीं है, वह निर्ग्रन्थ है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में माहण, श्रमण, भिक्षु एवं निर्ग्रन्थ का स्वरूप बताया गया है। यह पिछले समस्त अध्ययनों का सार है। इस अध्ययन का नाम गाथा-पोडशक भी है। गाथा अध्ययन क्या और कैसे ?
गाथा के चार निक्षेप होते हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । नामगाथा, स्थापनागाथा तो सुगम हैं। ज्ञशरीर और भव्य शरीर से व्यतिरिक्त द्रव्यगाथा यह है कि जो पुस्तक और पन्नों पर लिखी हुई है जैसे 'जपति' इत्यादि । अथवा पुस्तक और पन्नों पर लिखी हुई यह षोडश-अध्ययनरूपा गाथा ही द्रव्यगाथा है। नियुक्तिकार 'गाथा' शब्द का विश्लेषण करते हुए कहते हैंजिसका उच्चारण मधुर, कर्णप्रिय एवं सुन्दर हो, वह मधुरा भी गाथा है क्योंकि वह मधुर शब्दों से बनी हुई होती है । अथवा जो मधुर अक्षरों में प्रवृत्त करके गाई --- पढ़ी जाती है, उसका नाम भी गाथा है। अथवा जो सामुद्र छन्द में रची गई हो, वह गाथा है । गाथा का सामुद्र छन्द की दृष्टि से वृत्तिकार ने इस प्रकार अर्थ किया है---जो अनिबद्ध है---छन्दोबद्ध नहीं है, पण्डितों ने उसे संसार में 'गाथा' नाम दिया है। मालूम होता है, यह अध्ययन किसी प्रकार के पद्य में रचित नहीं है, फिर भी गाया (पढ़ा) जा सकता है, इसलिए इसका नाम 'गाथा' रखा गया है । अथवा जिसमें बहुत-सा अर्थसमूह एकत्रकर समाविष्ट किया गया हो, वह गाथा है । अर्थात् पूर्वोक्त पन्द्रह अध्ययनों में जो अर्थ (बातें) कहे गए हैं, उन सबको पिण्डित --- एकत्रित
१. 'तच्चेदं छन्द: ----अनिबद्धं च यल्लोके गाथेति तत्पण्डितैः प्रोक्तम'--सूत्र वृत्ति
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