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सूत्रकृतांग सूत्र
व्याख्या संयम एवं मोक्षमार्ग की साधना का सुपरिणाम
इन दोनों गाथाओं में शास्त्रकार ने संयम एवं सोक्षमार्ग की साधना का सुपरिणाम संक्षेप में बताया है।
शास्त्रकार का कहना है कि संयम एक ऐसा महत्त्वपूर्ण एवं सर्वसाधुओं द्वारा मान्य स्थान है, जो पाप या उससे उत्पन्न कर्मरूप शल्य को काटने वाला है। उस संयम का शास्त्रानुकुल सम्यक्रूप से अनुष्ठान करके या उसकी साधना करके बहुत से साधक संसारसागर से पार हुए हैं। जिनके कर्म पूर्णतया क्षय नहीं हुए, वे सम्यक्त्वप्राप्त सच्चारित्री साधक वैमानिक देव हुए हैं, या आगे चलकर होंगे।
अब शास्त्रकार इस अध्ययन का उपसंहार करते हुए सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग का माहात्म्य और सुपरिणाम बताते हुए कहते हैं कि कर्म को विदारण करने में समर्थ बहुत से वीरसाधक पूर्वकाल में हो चुके हैं, भविष्य में भी उत्तम संयम का अनुष्ठान करने वाले बहुत से साधक होंगे और वर्तमान काल में भी वैसे ही धीरसाधक हैं। उन साधकों ने संसारसागर को कैसे पार किया, पार करेगे या पार करते हैं । इसके लिए शास्त्रकार कहते हैं-दुःख से प्राप्त करने योग्य सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग की अन्तिम सीमा (पराकाष्ठा) पर पहुँचकर तथा दूसरों के समक्ष उस मार्ग को प्रकाशित करके तथा स्वयं उसका आचरण करते हुए संसारसागर से वे पार हुए हैं, हो रहे हैं और होंगे। 'ति' शब्द समाप्ति का सूचक है , 'बेमि' का अर्थ पूर्ववत् है।
सूत्रकृतांग सूत्र का पन्द्रहवाँ आदानीय नामक अध्ययन अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण।
॥ आदानीय नामक पन्द्रहवाँ अध्ययन समाप्त ॥
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