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सूत्रकृतांग सूत्र में धर्माराधन का अभाव है। अतः वे मोक्षगति (देव आदि भवों से) प्राप्त नहीं कर सकते, न दुःखों का अन्त कर सकते हैं। इसके विपरीत आहतमत में तीर्थकर, गणधर आदि का कथन है कि मनुष्य ही समस्त दुःखों का अन्त कर सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है ; दूसरे प्राणी नहीं।
साथ ही गणधर आदि का कहना है कि मनुष्य भव में ही धर्माराधना की परिपूर्ण सामग्री का सद्भाव होता है। इसलिए मनुष्य के बिना मनुष्य शरीर, उत्तम क्षेत्र, सद्धर्मश्रवण, श्रद्धा तथा चारित्र में पराक्रम आदि सब समुच्छ्य-अभ्युदय प्राप्त होना दुर्लभ है, फिर मोक्ष पाने की बात तो दूर है। अथवा मनुष्य शरीर-रूप अभ्युदय का प्राप्त करना अतीव दुर्लभ है। जो व्यक्ति धर्माचरण नहीं करता है, जिसके पुण्य प्रबल नहीं हैं, उसे मानव शरीर प्राप्त होना कठिन है। जैसे महासागर में गिरे हुए रत्न का पुनः पाना अति दुर्लभ है, इसी तरह मानव-शरीर मिलना भी दुर्लभ है । कहा भी है
ननु पुनरिदमतिदुर्लभमगाधसंसारजलधिविभ्रष्टम् ।
मानुष्य खद्योतडिल्लताविलसित प्रतिमम् ।। अर्थात्-- यह मानवशरीर जुगन के प्रकाश और बिजली की चमक के समान अत्यन्त चंचल है । इसलिए यदि वह अगाध संसार-सागर में गिर गया तो फिर इसका प्राप्त होना अत्यन्त दुर्लभ है ।
जिस मनुष्य के पुण्य का संचय नहीं होता, वह धर्माराधना या संयम-पालन से रहित मानव इस उत्तम देवदुर्लभ मानव शरीर से या उत्तमधर्म से भ्रष्ट होकर इस संसार की अटपटी विविध योनियों और गतियों में भटकता है, उसे एक बार मानव-शरीर से भ्रष्ट हो जाने के बाद फिर दूसरे तिर्यंच आदि जन्मों में सम्बोधि --- सम्यग्दृष्टि का पाना अतीव दुर्लभ है। क्योंकि जैनदर्शन का यह सिद्धान्त है कि सम्यक्त्व से भ्रष्ट होने के बाद उत्कृष्ट अर्धपुद्गलपरावर्तकाल के पश्चात् फिर सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। इस दृष्टि से मनुष्य शरीर या सम्यग्दर्शनरूप उत्तम धर्म से भ्रष्ट होने के बाद जन्मान्तर में सम्बोधि का पाना दुर्लभ बताया है।
एक और महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यहाँ ब्यक्त किया है कि सम्यग्दर्शन या सम्बोधि की प्राप्ति के योग्य शुभलेश्या (आत्मा या अन्तःकरण की शुद्ध परिणति) का प्राप्त करना अत्यन्त दुर्लभ है। अथवा अर्चा का अर्थ है-तेजस्वी (ज्वाला के समान) मानव शरीर । जिसने धर्मरूपी बीज नहीं बोया है, उसे तेजस्वी मानव शरीर प्राप्त नहीं होता। तब फिर आर्यक्षेत्र, उत्तम कुल में जन्म, समस्त इन्द्रियों की पूर्णता इत्यादि सामग्री का मिलना तो और भी दुर्लभ है। साथ ही जो धर्म-प्राप्ति करने योग्य जीव हैं, उनकी-सी लेश्या प्राप्त करना भी जीवों के लिए अत्यन्त कठिन है।
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