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आदान : पन्द्रहवाँ अध्ययन
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समस्त द्वन्द्वों से मुक्त होकर किनारे पहुँचकर विश्राम लेती है, उसी प्रकार उत्तम चारित्रवान् कर्णधार से युक्त जीवनरूपी नौका तप-संयमरूपी पवन से प्रेरित होकर दु.खात्मक संसार से छूटकर समस्त दुःखों के अभावरूप मोक्ष के तट पर पहुँच जाती है।
मूल पाठ तिउट्टइ उ मेहावी, जाणं लोगंसि पावगं । तुटंति पावकम्माणि, नवं कम्ममकुव्वओ ॥६॥
संस्कृत छाया त्र ट्यति तु मेधावी जानन् लोके पापकम् । व ट्यन्ति पाप कर्माणि, नवं कर्माकुर्वतः ॥६॥
अन्वयार्थ (लोगसि पावगं जाणं) लोक में पापकर्म को जानने वाला (मेहावी उ तिउइ) बुद्धिमान पुरुष समस्त बन्धनों से छूट जाता है। (नवं कम्म अकुव्वओ) नवीन कर्मबन्ध न करने वाले पुरुष के (पावकम्माणि तिउति ) सभी पापकर्मों के बन्धन टूट जाते हैं।
भावार्थ
लोक में पापकर्म के स्वरूप को जानने वाला बुद्धिमान साधक सभी बन्धनों को तोड़ देता है। क्योंकि नया कर्मबन्धन न करने वाले पुरुष के सभी पापकर्मबन्धन टूट जाते हैं।
व्याख्या
बन्धनमुक्त मेधावी साधक पूर्वगाथा में भावनायोग से शुद्ध आत्मा की गति-मति बताई गई थी, उसी सन्दर्भ में इस गाथा में बताया गया है कि तथारूप शुद्धात्मा मन-वचन-काया द्वारा अशुभ यानी पाप से छूट जाता है, अथवा वह सब प्रकार के बन्धनों को तोड़ देता है । वह समस्त बन्धनों से मुक्त होकर संसारसागर से पार हो जाता है । कैसे मुक्त हो जाता है, इसकी संक्षिप्त प्रक्रिया शास्त्रकार बताते हैं -ति उट्टइ उ मेहावी . नवं कम्ममकुव्वओ।' अर्थात् -- शास्त्रोक्त साधु-मर्यादाओं में स्थित अथवा सद्असद्विवेकी साधक चौदह रज्जु परिमित तथा जीवों से भरे हुए इस लोक में सावद्यानुष्ठानरूप पापाचरण को अथवा उसके कार्यरूप अष्टविध कर्मों को या विशेषतः पाप-कर्मों को ज्ञपरिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यानपरिज्ञा से उनके कारणों का त्याग करके उनसे मुक्त हो जाता है । इस प्रकार लोक अथवा कर्म को जानने वाला तथा नवीन कर्मबन्ध न करने वाला यानी आस्रवद्वारों को रोकने वाला व्यक्ति पूर्वसंचित प्राचीन
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