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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : सूत्र १४१-१४२
सुसमा-लक्खण-पदं सुषमा-लक्षण-पदम्
सुषमा-लक्षण-पद १४१. दसहि ठाणेहि ओगाढं सुसमं दशभिः स्थानः अवगाढां सुषमां जानी- १४१. दस स्थानों से सुषमा काल की अवस्थिति जाणेज्जा, जहायात्, तद्यथा
जानी जाती हैअकाले ण वरिसति,
अकाले न वर्षति, काले वर्षति, १. असमय में वर्षा नहीं होती, 'काले वरिसति, असाधवो न पूज्यन्ते, साधवः पूज्यन्ते,
२. समय पर वर्षा होती है, असाहू ण पूइज्जति, गुरुषु जनः सम्यक् प्रतिपन्न:,
३. असाधुओं की पूजा नहीं होती,
४. साधुओं की पूजा होती है, साहू पूइज्जति, मनोज्ञाः शब्दाः, मनोज्ञानि रूपाणि,
५. मनुष्य गुरुजनों के प्रति सम्यग्गुरुसु जणो सम्म पडिवण्णो, मनोज्ञाः गन्धाः, मनोज्ञाः रसाः,
व्यवहार करता है, मणुण्णा सद्दा, मणुण्गा रूवा, मनोज्ञाः स्पर्शाः।
६. शब्द मनोज्ञ होते हैं, मणुण्णा गधा, मणुण्णा रसा,
७. रस मनोज्ञ होते हैं, मणुण्णा फासा।
८. रूप मनोज्ञ होते हैं, ६. गंध मनोज्ञ होते हैं, १०. स्पर्श मनोज्ञ होते हैं।
रुक्ख-पदं रुक्ष-पदम्
वृक्ष-पद १४२. सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा सुषमसुषमायां समायां दज्ञाविधाः रुक्षाः १४२. सुषम-सुपमा काल में दस प्रकार के वृक्ष
रुक्खा उवभोगत्ताए हवमा- उपभोग्यताय अर्वाग् आगच्छन्ति, उपभोग में आते हैंगच्छंति, तं जहा
तद्यथा
संगहणी-गाहा
संग्रहणी-गाथा १. मतंगया य भिंगा, १. मदाङ्गकाश्च भृङ्गाः,
१. मदाङ्गक-मादक रस वाले, तुडितंगा दोव जोति चित्तंगा । त्रुटिताङ्गाः दीपाः ज्योतिषा: चित्राङ्गाः।। २. भृङ्ग-भाजनाकार पत्तों वाले, चित्तरसा मणियंगा, चित्ररमाः मण्यङ्गाः, ३. त्रुटिताङ्ग-वाद्यध्वनि उत्पन्न करने गेहागारा अणियणा य॥ गेहाकारा अनग्नाश्च ॥ वाले, ४. दीपाङ्ग-प्रकाश करने वाले,
५. ज्योतिअङ्ग-अग्नि की भांति ऊष्मा सहित प्रकाश करने वाले, ६. चित्राङ्ग-मालाकार पुष्षों से लदे हुए, ७. चित्ररस-विविध प्रकार के मनोज्ञ रस वाले, ८. मणिअंग—आभरणाकार अवयवोंवाले, ६. गेहाकार--घर के आकार वाले, १०. अनग्न-नग्नत्व को ढांकने के उपयोग में आने वाले।
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