SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 961
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ६२० स्थान १० : सूत्र ८३-८४ सोक्ख-पदं ५३. दसविधे सोक्खे पण्णत्ते, तं जहां १. आरोग्ग दोहमाउं, अड्डेज्जं काम भोग संतोसे। आत्थ सुहभाग णिक्खम्म- मेवतत्तो अणाबाहे ॥ सौख्य-पदम् दशविधं सौख्यं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा१. आरोग्यं दीर्घमायुः, आढ्यत्वं कामः भोग: संतोषः । अस्ति शुभभोगः निष्क्रम: एव ततोऽनाबाधः ॥ सौख्य-पद ८३. सुख के दस प्रकार हैं १. आरोग्य, २. दीर्घ आयुष्य, ३. आढयता-धन की प्रचुरता। ४. काम-शब्द और रूप। ५. भोग-गंध, रस और स्पर्श । ६. सन्तोष-अल्पइच्छा। ७. अस्ति-जब-जब जो प्रयोजन होता है उसकी तब-तब पूर्ति हो जाना। ८. शुभभोग-रमणीय विषयों का भोग करना। ९. निष्क्रमण-प्रव्रज्या। १०.अनाबाध-जन्म, मृत्यु आदि की बाधाओं से रहित-मोक्ष-सुख। उवधात-विसोहि-पदं उपघात-विशोधि-पदम् १४. दसविधे उवधाते पण्णत्ते, तं दशविधः उपघात: प्रज्ञप्तः. तदयथा_ जहाउग्गमोवधाते, उप्पायणोवधाते, उद्गमोपघातः, उत्पादनोपघात:, •एसणोवधाते, परिकम्मोवधाते,° एषणोपघातः, परिकर्मोपघातः, परिहरणोवघाते, णाणोवधाते, परिधानोपघातः, ज्ञानोपघातः, दसणोवघाते, चरित्तोवघाते, दर्शनोपघातः, चरित्रोपघातः, अचियत्तोवघाते, सारक्खणोवधाते। अप्रीत्युपघातः, संरक्षणोपघातः। उपघात-विशोधि-पद ८४. उपघात के दस प्रकार हैं १. उद्गम [भिक्षा सम्बन्धी दोषों से होने वाला चारित्र का उपघात । २. उत्पाद [भिक्षा सम्बन्धी दोषों] से होने वाला चारित्न का उपघात । ३. एषणा [भिक्षा सम्बन्धी दोषों से होने वाला चारित्र का उपघात । ४. परिकर्म [वस्त्र-पात्र आदि संवारने] से होने वाला चारित्र का उपघात । ५. परिहरण [अकल्प्य उपकरणों के उपभोग] से होने वाला चारित्र का उपघात । ६.प्रमाद आदि से होने वाला ज्ञान का अपघात । ७. शंका आदि से होने वाला दर्शन का उपघात। ८. समितियों के भंग से होने वाला चारित्र का उपघात । ६. अप्रीति उपघात-अप्रीति से होने वाला विनय आदि का उपघात ।। १०. सरक्षण उपघात-शरीर आदि में मूर्छा रखने से होने वाला परिग्रह-विरति का उपघात । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy