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ठाणं (स्थान)
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स्थान ६ : सूत्र ६२ आगमेस्साए उस्स प्पिणीए आगमिष्यत्यां उत्सपिण्यां चातुर्याम -ये नौ आगामी उत्सर्पिणी में चातुर्याम चाउज्जामं धम्मं पण्णवइत्ता धर्म प्रज्ञाप्य सेत्स्यन्ति भोत्स्यन्ते । धर्म की प्ररूपणा कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चि- मोक्ष्यन्ति परिनिर्वाष्यन्ति सर्वदुःखानां परिनिर्वृत तथा समस्त दुःखों से रहित हिंति परिणिव्वाइहिति सव्व- अन्तं करिष्यन्ति ।
होंगे। दुक्खाणं अंतं काहिति। महापउम-पदं महापद्म-पदम्
महापद्म-पद ६२. एस णं अज्जो ! सएि राया एष आर्य ! श्रेणिक: राजा भिभिसारः ६२. आर्यो ! भिभिसारे कालमासे कालं किच्चा कालमासे कालं कृत्वा अस्याः रत्न
राजा भिम्भिसार श्रेणिक मरणकाल में इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए प्रभायाः पृथिव्याः, सीमन्तके नरके मृत्यु को प्राप्तकर इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमंतए णरए चउरासीतिवास- चतुरशीतिवर्षसहस्रस्थितिके निरये। सीमन्तक नरक के ८४ हजार वर्ष की सहस्स द्वितीयंसि णिरयंसि णेर- नैरयिकता उपपत्स्यते।
स्थिति वाले भाग में नारकीय के रूप में इयत्ताए उववज्जिहिति।
उत्पन्न होगा। से णं तत्थ णेरइए भविस्सति- स तत्र नैरयिको भविष्यति—कालः वह वहां नैरयिक होगा। उसका वर्ण
काला, काली आभा वाला, महान् लोमकाले कालोभासे 'गंभीरलोम- कालावभासः गम्भीरलोमहर्षः भीम:
हर्षक, विकराल, उद्वेगजनक और परमहरिसे भीमे उत्तासणए उत्रासनकः परमकृष्ण: वर्णेन । स कृष्ण होगा । वह वहां ज्वलन्त, मन, परमकिण्हे वणेणं । से णं तत्र वेदनां वेदयिष्यति उज्ज्वलां
वचन और काय–तीनों की कसौटी
करने वाली, अत्यन्त तीव्र, प्रगाढ, कटुक, तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं वितुलां प्रगाढां कटुकां कर्कशां चण्डां कर्कश, चण्ड, दुःखकर, दुर्ग की भांति 'तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुःखां दुर्गा दिव्यां दुरधिसहाम् ।
अलंध्य, देव-निर्मित, असह्य वेदना का
वेदन करेगा। दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं। से तं ततो णरयाओ उन्वट्टत्ता स ततः नरकात् उद्वर्य आगमिष्यन्त्यां वह उस नरक से निकलकर आगामी आगमेसाए उस्स प्पिणीए इहेव उत्सपिण्यां इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भरते उपपिणी काल में इसी जम्बूद्वीप द्वीप के जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ड- वर्षे वैताढ्यगिरिपादमूले पुण्ड्रेषु जन- भरत क्षेत्र के वैताड्य पर्वत के पादमूल में गिरिपायमूले पुंडेसु जणवएसु पदेषु शतद्वारे नगरे सन्मतेः कुलकरस्य 'पुण्ड्र" जनपद के शतद्वार नगर में सन्मति' सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्रायाः भार्यायाः कुक्षौ पुंस्तया कुलकर की भद्रा नामक भार्या की कुक्षि भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए प्रत्याजनिष्यते ।
में पुरुष के रूप में उत्पन्न होगा। पच्चायाहिती। तए णं सा भद्दा भारिया णवण्हं तदा सा भद्रा भार्या नवानां मासानां वह भद्रा भार्या परिपूर्ण नौ मास तथा मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण बहुप्रतिपूर्णानां अर्धाष्टमानां च रात्रि- साढे सात दिन-रात बीत जाने पर सुकुय राइंदियाणं वोतिक्कंताणं सुकु- दिवानां व्यतिक्रान्तानां सुकुमालपाणि
मार हाथ-पैर वाले, अहीन प्रतिपूर्ण मालपाणिपायं अहीण-पडिपुण्ण- पादं अहीन-प्रतिपूर्ण-पञ्चेन्द्रियशरीरं
पञ्चेन्द्रिय शरीर वाले, लक्षण-व्यंजन"
और गुणों से युक्त अवयव वाले, मान२२. पंचिदियसरीरं लक्खण-वंजण- लक्षण-व्यञ्जन-गुणोपेतं मानोन्मान
उन्मान-प्रमाण आदि से सर्वाङ्ग सुन्दर 'गुणोववेयं माणुम्माण-प्पमाण- प्रमाण-प्रतिपूर्ण-सुजात-सर्वाङ्ग
शरीर वाले, चन्द्रमा की भांति मौन्यापडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंग-सुंदरंग सुन्दराङ्गशशिसौम्याकारं कान्तं प्रिय
कार, कमनीय, प्रियदर्शन वाले मुरूप पुत्र ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं दर्शनं सुरूपं दारकं प्रजनिष्यते।
का प्रसव करेगी। सुरुवं दारगं पयाहिती।
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