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________________ ठाणं (स्थान) १२१. सर्व्वेसिपि णं दीवसमुद्दाणं दारा अजोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं पण्णत्ता । बंध ठिति-पदं १२२. पुरिस वेयणिज्जस्स णं कम्मस्स जहणणं असंच्छराई बंधठिति पण्णत्ता । १२३. जसो कित्तीणामस्स णं कम्मस्स जगणं अटू मुत्ताई बंधठिती पण्णत्ता । १२४. उच्चागोतस्स णं कम्मस्स 'जहणणेणं अट्ठाई बंधठती पण्णत्ता । कुलकोड-पदं १२५. इंदियाणं अट्ठ जाति-कुलकोडि - जो मुह-सतसहस्सा पण्णत्ता । पावकम्म- पदं १२६. जीवा णं अट्ठठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणि वाचिणंति वाचिणिस्संति वा, तं जहा - पढमसमयणेरइयणिव्वत्तिते, अपढमसमयणेरइयणिव्यत्तिते, पढमसमय तिरिय णिव्वत्तिते, अपढमसमय तिरियणिव्वत्तिते, पढसमयमणिव्वत्तिते, अपढमसमयमणुयणिव्वत्तिते, पढमसमयदेव णिव्वत्तिते, ' अपढमसमयदेव णिव्वत्तिते । एवं चिण उवचिण बंध उदीर - वेद तह' णिज्जरा चेव । Jain Education International ८२१ सर्वेषामपि द्वीपसमुद्राणां द्वाराणि अष्ट योजनानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । बन्धस्थिति-पदम् पुरुषवेदनीयस्य कर्मणः जघन्येन अष्ट संवत्सराणि बन्धस्थिति: प्रज्ञप्ता । यशोकीर्त्तिनाम्नः कर्मण: जघन्येन अष्ट मुहूर्ता बन्धस्थितिः प्रज्ञप्ता | पापकर्म-पदम् जोवा : अष्टस्थाननिर्वतितान् पुद्गलान् पापकर्मतया अचैषुः वा चिन्वन्ति चेष्यन्ति वा तद्यथाप्रथमसमयनै रयिकनिर्वर्तितान्, अप्रथमसमयनै रयिकनिर्वर्तितान्, प्रथमसमय तिर्यग्निर्वर्तितान्, अप्रथमसमयतिर्यग्निर्वर्तितान्, प्रथमसमयमनुजनिर्वर्तितान्, अप्रथमसमयमनुजनिर्वर्तितान्, प्रथमसमयदेवनिर्वर्तितान्, अप्रथमसमयदेवनिर्वतितान् । स्थान : सूत्र १२१-१२६ १२१. सभी द्वीप-समुद्रों के द्वार आठ-आठ योजन ऊंचे हैं । उच्चगोत्रस्य कर्मणः जघन्येन अष्ट १२४. उच्च गोत्र कर्म की बंध- स्थिति कम से मुहूर्त्ता बन्धस्थितिः प्रज्ञप्ता । कम आठ मुहूर्त्त की है। एवम् — चय- उपचय-बन्ध उदीर-वेदा: तथा निर्जरा चैव । बन्धस्थिति पद १२२. पुरुषवेदनीय कर्म की बंध-स्थिति कम से कम आठ वर्षों की है। कुल कोटि-पदम् कुलकोटि-पद त्रीन्द्रियाणां अष्ट जाति-कुल कोटि-योनि- १२५ त्रीन्द्रिय जाति के योनि - प्रवाह में होने प्रमुख - शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । वाली कुल कोटियां आठ लाख हैं" । For Private & Personal Use Only १२३. यशः कीर्ति नाम कर्म की बंध- स्थिति कम से कम आठ मुहूर्त की है । पापकर्म - पद १२६. जीवों ने आठ स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्म के रूप में चय किया है, करते हैं और करेंगे १. प्रथमसमय नैरयिकनिर्वर्तित पुदगलों का । २. अप्रथमसमय नैरयिकनिर्वर्तित पुद्गलों का । ३. प्रथमसमय तिर्यञ्चनिर्वर्तित पुद्गलों का । ४. अप्रथमसमय तिर्यञ्चनिर्वर्तित पुद्गलों का । ५. प्रथमसमय मनुष्यनिर्वर्तित पुद्गलों का | ६. प्रथमसमय मनुष्य निर्वर्तित पुद्गलों का । ७. प्रथमसमय देवनिर्वर्तित पुद्गलों का । ८. अप्रथमसमय देवनिर्वर्तित पुद्गलों का। इसी प्रकार उनका उपचय, बन्धन, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे। www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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