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ठाणं (स्थान)
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स्थान ८ : सूत्र ४३-४५
कण्हराइ-पदं कृष्णराजि-पदम्
कृष्णराजि-पद ४३. उपि सणंकुमार-माहिंदाणं उपरि सनत्कुमार-माहेन्द्रयोः कल्पयोः ४३. सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के ऊपर
कप्पाणं हेट्टि बंभलोगे कप्पे रिट- अधस्तात् ब्रह्मलोके कल्पे रिष्टविमान- तथा ब्रह्मलोक देवलोक के नीचे रिष्टविमाण-पत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग- प्रस्तटे, अत्र अक्षवाटक-समचतुरस्र- विमान का प्रस्तट है। वहां अखाड़े के समचउरंस-संठाण-संठिताओ संस्थान-संस्थिताः अष्ट कृष्णराजयः समान समचतुरस्र [चतुष्कोण] संस्थान अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ, तं प्रज्ञप्ता:, तद्यथा
वाली आठ कृष्णराजियां—काले पुद्गलों जहा
की पंक्तियां हैंपुरथिमे णं दो कण्हराईओ, पौरस्त्ये द्वे कृष्णराजी,
१. पूर्व में दो (१, २) कृष्णराजियां हैं, दाहिणे णं दो कण्हराईओ, दक्षिणस्यां द्वे कृष्णराजी,
२. दक्षिण में दो (३,४) कृष्णराजियां हैं, पच्चत्थिमे णं दो कण्हराईओ, पाश्चात्ये द्वे कृष्णराजी,
३. पश्चिम में दो (५,६) कृष्णराजियां हैं, उत्तरे णं दो कण्हराईओ। उत्तरस्यां द्वे कृष्णराजी।
४. उत्तर में दो (७,८) कृष्ण राजियां हैं। पुरथिमा अभंतरा कण्हराई पौरस्त्या अभ्यन्तरा कृष्णराजिः । पूर्व की आभ्यन्तर कृष्णराजी दक्षिण की दाहिणं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। दाक्षिणात्यां बाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा । बाह्य कृष्णराजी से स्पृष्ट है। दाहिणा अभंतरा कण्हराई दक्षिणा अभ्यन्तरा कृष्ण राजिः । दक्षिण की आभ्यन्तर कृष्णराजी पश्चिम पच्चत्थिमं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा। पाश्चात्यां बाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा।। की बाह्य कृष्णराजी से स्पृष्ट है। पच्चत्थिमा अब्भतरा कण्हराई पाश्चात्या अभ्यन्तरा कृष्णराजिः पश्चिम की आभ्यन्तर कृष्णराजी उत्तर उत्तरं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। ओत्तराही बाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा। की बाह्य कृष्णराजी से स्पृष्ट है। उत्तरा अब्भंतरा कण्हराई पुरथिमं उत्तरा अभ्यन्तरा कृष्णराजिः पौरस्त्यां उत्तर की आभ्यन्तर कृष्णराजी पूर्व की बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। बाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा।
बाह्य कृष्णराजी से स्पृष्ट है। पुरथिमपच्चथिमिल्लाओ बाहि- पौरस्त्यपाश्चात्ये बाह्य द्वे कृष्णराजी पूर्व और पश्चिम की बाह्य दो कृष्णराओ दो कण्हराईओ छलंसाओ। षडस्र ।
राजियां षट्कोण वाली हैं। उत्तरदाहिणाओ बाहिराओ दो उत्तरदक्षिणे बाह्य द्वे कृष्णराजी उत्तर और दक्षिण की बाह्य दो कृष्णकण्हराईओ तंसाओ। व्यस्र।
राजियां त्रिकोण वाली हैं। सव्वाओ वि णं अब्भंत रकण्ह- सर्वा अपि अभ्यन्तरकृष्णराजयः समस्त आभ्यन्तर कृष्णराजियां चतुष्कोण राईओ चउरंसाओ। चतुरस्राः ।
वाली हैं। ४४. एतासि णं अटण्हं कण्हराईणं अटू एतासां अष्टानां कृष्णराजीनां अष्ट ४४. इन आठ कृष्णराजियों के आठ नाम हैं
णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा- नामधेयानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाकण्हराईति वा, मेहराईति वा, कृष्णराजीति वा, मेघराजीति वा, १. कृष्णराजी, २. मेघराजी, ३. मघा, मघाति वा, माघवतीति वा, मघेति वा, माघवतीति वा, । ४. माघवती, ५. वातपरिघ, वातफलिहेति वा, वातपलिक्खो- वातपरिघा इति वा, वातपरिक्षोभा ६. वातपरिक्षोभ, ७. देवपरिघ, भेति वा, देवफलिहेति वा, इति वा, देवपरिघा इति वा,
८. देवपरिक्षोभ। देवपलिक्खोभेति वा।
देवपरिक्षोभा इति वा।
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