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ठाणं (स्थान)
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स्थान २ : सूत्र ४२६-४३७
४२६. णामे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- नाम कर्म द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- ४२६. नामकर्म दो प्रकार का है
सुभणामे चेव, असुभणामे चेव। शुभनाम चैव, अशुभनाम चैव। शुभनाम, अशुभनाम। ४३०. गोत्ते कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं गोत्रं कर्म द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- ४३०. गोत्र कर्म दो प्रकार का है
जहा—उच्चागोते चेव, उच्चगोत्रञ्चैव, नीचगोत्रञ्चैव। उच्चगोत्र, नीचगोत्र ।
णीयागोते चेव । ४३१. अंतराइए कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं अन्तरायिकं कर्म द्विविधं प्रज्ञप्तम्, ४३१. अन्तराय कर्म दो प्रकार का है
जहा—पडुप्पण्णविणासिए चेव, तद्यथा—प्रत्युत्पन्नविनाशितं चैव, प्रत्युत्पन्न-विनाशित-वर्तमान में प्राप्त पिहति य आगामिपहं चेव। पिधत्ते च आगामिपथं चैव।
वस्तु का विनाश करने वाला, भविष्य में होने वाले लाभ के मार्ग को रोकने वाला।
मुच्छा -पदं मूर्छा-पदम्
मूर्छा-पद ४३२. दुविहा मुच्छा पणत्ता, तं जहा- द्विविधा मूर्छा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ४३२. मूर्छा दो प्रकार की है-प्रेयस्प्रत्ययापेज्जवत्तिया चेव,
प्रेयोवृत्तिका चैव, दोषवृत्तिका चैव। प्रेम के कारण होने वाली मूर्छा, दोसवत्तिया चेव।
द्वेषप्रत्यया-द्वेष के कारण होने वाली
मूर्छा। ४३३. पेज्जवत्तिया मुच्छा दुविहा प्रेयोवृत्तिका मूर्छा द्विविधा प्रज्ञप्ता, ४३३. प्रेयस्प्रत्यया मूर्छा दो प्रकार की है
पण्णत्ता, तं जहा—माया चेव, तद्यथा—माया चैव, लोभश्चैव। माया, लोभ।
लोभेचेव। ४३४. दोसवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता, दोषवृत्तिका मूर्छा द्विविधा प्रज्ञप्ता, ४३४. द्वेषप्रत्यया मूर्छा दो प्रकार की है
तं जहा—कोहे चेव, माणे चेव। तद्यथा--क्रोधश्चैव, मानश्चैव । क्रोध, मान।
आराहणा-पदं आराधना-पदम्
आराधना-पद ४३५. दुविहा आराहणा पण्णत्ता, तं द्विविधा आराधना प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ४३५. आराधना दो प्रकार की हैजहा—धम्मियाराहणा चेव, धार्मिक्याराधना चैव,
धार्मिकी आराधना-धार्मिकों के द्वारा केवलिआराहणा चेव। कैवलिक्याराधना चैव।
की जाने वाली आराधना, कैवलिकी आराधना केवलियों के
द्वारा की जाने वाली आराधना। ४३६. धम्मियाराहणा दुविहा पण्णत्ता, धार्मिक्याराधना द्विविधा प्रज्ञप्ता, ४३६. धार्मिकी आराधना दो प्रकार की हैतं जहा—सुयधम्माराहणा चेव, तद्यथा-श्रुतधर्माराधना चैव,
श्रुतधर्म की आराधना, चरित्रधम्माराहणा चेव। चरित्रधर्माराधना चैव।
चरित्नधर्म की आराधना। ४३७. केवलिआराहणा दविहा पण्णता, कैलिक्याराधना द्विविधा प्रज्ञप्ता. ४३७. कैवलिकी आराधना दो प्रकार की हैतं जहा—अंतकिरिया चेव, तद्यथा—अन्तक्रिया चैव,
अन्तक्रिया, कल्पविमानोपपत्तिका । कप्पविमाणोववत्तिा चेव। कल्पविमानोपपत्तिका चैव ।
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