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________________ भगवई श. १२ : उ. ४ : सू. ८० ४२. पएसिया खंधा, एगयओ अणंत- स्कन्धाः, एकतः अनन्तप्रदेशिक: पएसिए खंधे भवइ; अहवा असंखेज्जा स्कन्धः भवति, अथवा असंख्येयाः अणंतपएसिया खंधा भवंति। अनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धाः भवन्ति। अणंतहा कज्जमाणे अणंता परमाणु- अनन्तधा क्रियमाणः परमाणुपुद्गलाः पोग्गला भवंति॥ भवन्ति। प्रदेशी स्कंध होता है अथवा असंख्येय अनंत प्रदेशी स्कंध होते हैं। अनन्त भागों में विभक्त होने पर-अनन्त स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल होते हैं। भाष्य १. सूत्र ६६-८० तत्त्वार्थ सूत्र में पुद्गल द्रव्य के दो प्रकार बतलाए गए हैं-अणु और स्कंध।' अणु अबद्ध होता है, दूसरे अणुओं से असंयुक्त होता है। स्कंध अणुओं के संघात से बनता है। उमास्वाति ने स्कंध की उत्पत्ति के दो हेतु बतलाए हैं-१. संघात २. भेद। भाष्यकार ने तीन हेतुओं का निर्देश किया है १. संघात-दो परमाणु के संघात से द्विप्रदेश स्कंध बनता है। द्विप्रदेश स्कंध में एक अणु के मिलाने पर त्रिप्रदेश स्कंध हो जाता है। इस प्रकार अनेक परमाणुओं का संयोग होने पर अनेक प्रदेश वाले स्कंध बन जाते हैं। २. भेद-त्रिप्रदेश स्कंध में से एक परमाणु के अलग होने पर वह द्विप्रदेश स्कंध बन जाता है। ३. संघात-भेद-एक द्विप्रदेश स्कंध में से एक परमाणु पृथक् होता है, उसी समय एक दूसरा परमाणु आकर मिल जाता है। ये दोनों कार्य एक ही समय में होते हैं इसलिए यह तीसरा विकल्प बनता है। अणु केवल भेद से उत्पन्न होता है।' स्थानांग में संघात और भेद के दो-दो कारण बतलाए गए हैं१. परमाणुओं का संघात अपने स्वभाव से होता है। २. परमाणुओं का संघात दूसरे निमित्तों से होता है। १. स्कंध का भेद अपने स्वभाव से होता है। २. स्कंध का भेद दूसरे निमित्तों से होता है। प्रस्तुत प्रकरण में संघात और भेद के अनेक भंग (विकल्प) बतलाए गये हैं। देखें यंत्रदो परमाणु : संघात १ भेद १ द्विधा १ १/१ तीन परमाणु : संघात १-भेद २ द्विधा १ १/२ द्विधा २ १/१/१ चार परमाणु : संघात १-भेद ४ द्विधा १ १/३ द्विधा २ २/२ त्रिधा ३ १/१/२ चतुर्धा ४ १/१/१/१ पांच परमाणु : संघात १=भेद ६ द्विधा १ १/४ २ २/३ त्रिधा ३ १/१/३ ४ १/२/२ चतुर्धा ५१/१/१/२ पंचधा ६ १/१/१/१/१ छह परमाणु : संघात १-भेद १० १ १/५ २२/४ ३ ३/३ विधा ४ १/१/४ ५ १/२/३ ६ २/२/२ ७ १/१/१/३ ८ १/१/२/२ पंचधा ११/१/१/१/२ षड्ढा १०१/१/१/१/१/१ सात परमाणु : संघात १-भेद १४ द्विधा १ १/६ २ २/५ द्विधा चतुर्धा ३३/४ १. त. सू. ५/२५-अणवः स्कन्धाश्च। २. वही ५/२६-संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते। ३. त. सू. भा. वृ. ५/२६-संघातात् भेदात् संघातभेदादित्येभ्यस्त्रिभ्यः कारणेभ्यः स्कंधाः उत्पद्यन्ते द्विप्रदेशादयः। तद्यथा-द्वयोः परमाणवोः संघातात् द्विप्रदेशः, द्विप्रदेशस्याणोश्च संघातात् त्रिप्रदेशः, एवं संख्येयानामसंख्येयानां च प्रदेशानां संघातात् तावत्प्रदेशाः। ४. वही, ५/२६ भाष्य की टीका-एतदेव ह्यनन्तरोक्ता व्यणुकादयः स्कंधाः संघातभेदाभ्यामेकसामयिकाभ्यामुद्भवन्ति, अविभागीयः कालः परमनिरुद्धश्च समयः स तत्रैकस्मिन् समये अभिन्नकाले व्यणुकस्कंधादेकोऽणुभिर्भिद्यते परः संहन्यते समकमेवेत्यतः संघातभेदाभ्यामुत्पद्यते। ५. त. सू. ५/२७ भेदादणुः। ६. ठाणं, २/२२१-२२२ दोहिं ठाणेहिं पोग्गला साहण्णंति, तं जहासई या पोग्गला साहण्णंति, परेण वा पोग्गला साहण्णंति। दोहिं ठाणेहिं पोग्गला भिज्जंति, तं जहासई वा पोग्गला भिज्जंति, परेण वा पोग्गला भिज्जंति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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