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________________ भगवई ४१ श. १२ : उ. ४: सू. ८० स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर अनन्तप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर द्विप्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर अनन्तप्रदेशी स्कंध होता है यावत् अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर असंख्येय प्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर अनन्त प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर दो अनन्तप्रदेशी स्कंध होते हैं अथवा एक ओर द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर दो अनन्तप्रदेशी स्कंध होते हैं। इसी प्रकार यावत् अथवा एक ओर दस प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर दो अनन्त प्रदेशी स्कंध होते हैं अथवा एक ओर संख्येय प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर दो अनन्तप्रदेशी स्कंध होते हैं अथवा एक ओर एक असंख्येय प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर दो अनन्तप्रदेशी स्कंध होते हैं अथवा तीन अनन्तप्रदेशी स्कंध होते परमाणुपोग्गला,एगयओ अणंत- पुद्गलौ, एकतः अनन्तप्रदेशिक: स्कन्धः पएसिए खंधे भवड; अहवा एगयओ भवति, अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः, परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए एकतः द्विप्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः खंधे, एगपओ अणंतपएसिए खंधे । अनन्तप्रदेशिक: स्कन्धः भवति यावत् भवइ जाव अहवा एगयओ परमाणु- अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः, एकतः पोग्गले, एगयओ असंखेज्जपएसिए असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः खंधे, एगयओ अणंतपएसिए खंधे अनन्तप्रदेशिक: स्कन्धः भवति अथवा भव; अहवा एगयओ परमाणु- एकतः परमाणुपुद्गलः, एकतः द्वौ पोग्गले, एगयओ दो अणंतपएसिया अनन्तप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, अथवा खंधा भवंति; अहवा एगयओ एकतः द्विप्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः द्वौ दुपएसिए खंघे, एगयओ दो अनन्तप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, एवं अणंतपएसिया खंधा भवंति, एवं जाव यावत् अथवा एकतः दशप्रदेशिक: अहवा एगयओ दसपएसिए खंधे, स्कन्धः, एकतः द्वौ अनन्तप्रदेशिको एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा स्कन्धौ भवतः, अथवा एकतः भवंति; अहवा एगयओ संखेज्ज- संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः द्वौ पएसिए खंघे, एगयओ दो अणंत- अनन्तप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः अथवा पएसिया खंधा भवंति; अहवा एगयओ एकतः असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः, असंखेज्जपएसिए खंधे, एगयओ दो एकतः द्वौ अनन्तप्रदेशिको स्कन्धौ अणंतपएसिया खंधा भवंति; अहवा भवतः, अथवा त्रयः अनन्तप्रदेशिकाः तिणि अणंतपएसिया खंधा भवंति। स्कन्धाः भवन्ति। चउहा कज्जमाणे एगयओ तिण्णि चतुर्धा क्रियमाणः एकतः त्रयः परमाणुपरमाणुपोग्गला, एगयओ अणंत- पुद्गलाः, एकतः अनन्तप्रदेशिकः पएसिए खंधे भवइ। स्कन्धः भवति। एवं चउक्कसंजोगो जाव असंखेज्जग- एवं चतुष्कसंयोगः यावत् असंख्येयकसंजोगो। एते सव्वे जहेव असंखेज्जाणं संयोगः। एते सर्वे यथैव असंख्येयानां भणिया तहेव अणंताण वि भाणियब्वं, भणिताः तथैव अनन्तानामपि नवरं-एक्कं अणंतगं अन्भहियं भणितव्यम् नवरम्-एकं अनन्तकम् भाणियब्वं जाव अहवा एगयओ अभ्यधिकं भणितव्यं यावत् अथवा संखेज्जा संखेज्जपएसिया खंधा, एकतः संख्येयाः संख्येयप्रदेशिकाः एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवइ, स्कन्धाः, एकतः अनन्तप्रदेशिक: अहवा एगपओ संखेज्जा असंखेज्ज- स्कन्धः भवति, अथवा एकतः संख्येयाः पएसिया खंघा, एगपओ अणंत- असंख्येयप्रदेशिकाः स्कन्धाः, एकतः पएसिए खंधे भवइअहवा संखेज्जा अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः भवति, अथवा अणंतपएसिया खंधा भवति। संख्येयाः अनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धाः भवन्ति। असंखेज्जहा कज्जमाणे एगयओ असंख्येयधा क्रियमाणः एकतः असंखेज्जा परमाणुपोग्गला, एगयओ असंख्येयाः परमाणुपुद्गलाः, एकतः अणंतपएसिए खंधे भवइ अहवा अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः भवति, अथवा एगपओ असंखेज्जा दुपएसिया खंधा, एकतः असंख्येयौ द्विप्रदेशिको स्कन्धौ, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवइ जाव एकतः अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः भवति अहवा एगयओ असंखेज्जा यावत् अथवा एकतः असंख्येयाः संखेज्जपएसिया खंधा, एगयओ संख्येयप्रदेशिकाः स्कन्धाः, एकतः अणंतपएसिए खंधे भव; अहवा अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः भवति, अथवा एगयओ असंखेज्जा असंखेज्ज- एकतः असंख्येयाः असंख्येयप्रदेशिकाः चार भागों में विभक्त होने पर-एक ओर तीन स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर अनन्तप्रदेशी स्कंध होता है। इसी प्रकार चतुष्क संयोग यावत् असंख्येय संयोग। जैसे असंख्येय प्रदेशी स्कंध की वक्तव्यता वैसे ही अनन्त प्रदेशी स्कंध की वक्तव्यता, इतना विशेष है अनन्त में एक अधिक वक्तव्य है यावत् अथवा एक ओर संख्येय संख्येयप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर अनन्तप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर संख्येय असंख्येय प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर अनन्तप्रदेशी स्कंध होता है अथवा संख्येय अनन्तप्रदेशी स्कंध होते हैं। असंख्येय भागों में विभक्त होने पर-एक ओर असंख्येय स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर अनन्तप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर असंख्येय द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर अनन्तप्रदेशी स्कंध होता है यावत् अथवा एक ओर असंख्येय संख्येयप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर अनन्त प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर असंख्येय असंख्येयप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर अनन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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