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________________ भगवई ३६ श. १२ : उ. ४ : सू. ७६ पएसिया खंधा भवंति। एवं एएणं कमेणं पंचगसंजोगो वि एवम् एतेन क्रमेण पञ्चकसंयोगः अपि भाणियन्वो जाव नवगसंजोगो। भणितव्यः यावत् नवकसंयोगः। दसहा कज्जमाणे एगयओ नव दशधा क्रियमाणः एकतः नव परमाणुपरमाणुपोग्गला, एगयओ संखेज्ज- पुद्गलाः, एकतः संख्येयप्रदेशिकः पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ स्कन्धः भवति, अथवा एकतः अष्ट अट्ठपरमाणुपोग्गला, एगयओ परमाणुपुद्गलाः, एकतः द्विप्रदेशिकः, दुपएसिए, एगयओ संखेज्जपएसिए एकतः संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः भवति। खंधे भवइ। एएणं कमेणं एक्केक्को एतेन क्रमेण एकैक : पूरयितव्यः यावत् पूरेयव्वो जाव अहवा एगयओ अथवा एकतः दशप्रदेशिकः स्कन्धः, दसपएसिए खंधे, एगयओ नव एकतः नव संख्येयप्रदेशिकाः स्कन्धाः संखेज्जपएसिया खंधा भवंतिः अहवा भवन्ति, अथवा दश संख्येयप्रदेशिकाः दस संखेज्जपएसिया खंधा भवंति। स्कन्धाः भवन्ति। संखेज्जहा कज्जमाणे संखेज्जा संख्येयधा क्रियमाणः संख्येयाः परमाणुपोग्गला भवंति।। परमाणुपुद्गलाः भवन्ति। इसी प्रकार इनके क्रमशः पांच संयोग भी वक्तव्य है यावत् नौ संयोग तक। दस भागों में विभक्त होने पर-एक ओर नौ स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर संख्येय प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर आठ स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर द्विप्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर संख्येय प्रदेशी स्कंध होता है। इनको क्रमशः एक-एक पूर्ण करना चाहिए यावत् अथवा एक ओर दस प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर नौ संख्येय प्रदेशी स्कंध होते हैं अथवा दस संख्येय प्रदेशी स्कंध होते हैं। संख्येय भागों में विभक्त होने पर-संख्येय स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल होते हैं। ७६. असंखेज्जा भंते! परमाणुपोग्गला असंख्येयाः भदन्त! परमाणुपुद्गलाः ७६. भंते ! असंख्येय परमाणु-पुद्गल एकत्र एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं एकतः संहन्यन्ते, संहत्य किं भवति? संहत होते हैं उस संहति से क्या निष्पन्न भवइ? होता है? गोयमा! असंखेज्जपएसिए खंधे गौतम! असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः गौतम! असंख्येय प्रदेशी स्कंध निष्पन्न भवइ। से भिज्जमाणे दुहा वि जाव भवति। सः भिद्यमानः द्विधा अपि होता है। वह टूटने पर दो अथवा यावत् दस दसहा वि, संखेज्जहा वि, असंखेज्जहा यावत् दशधा अपि, संख्येयधा अपि, अथवा संख्येय अथवा असंख्येय भागों में वि कज्जइअसंख्येयधा अपि क्रियते विभक्त होता है। दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणु- द्विधा क्रियमाणः एकतः परमाणु- दो भागों में विभक्त होने पर-एक ओर स्वतंत्र पोग्गले, एगयओ असंखेज्जपएसिए पुदगलः, एकतः असंख्येयप्रदेशिकः परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर असंख्येय खंधे भवइ जाव अहवा एयगओ स्कन्धः भवति यावत् अथवा एकतः प्रदेशी स्कंध होता है यावत् अथवा एक ओर दसपएसिए खंधे भवइ, एगयओ दशप्रदेशिक: स्कन्धः भवति, एकतः दस प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर असंख्येय असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ; अहवा असंख्येयप्रदेशिक: स्कन्धः भवति, प्रदेशी स्कन्ध होता है अथवा एक ओर एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे, अथवा एकतः संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः, संख्येय प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर असंख्येय एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भव; एकतः असंख्येयप्रदेशिक: स्कन्धः प्रदेशी स्कंध होता है अथवा दो असंख्येय अहवा दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवति, अथवा द्वौ असंख्येयप्रदेशिको प्रदेशी स्कन्ध होते हैं। भवंति। स्कन्धौ भवतः। तिहा कज्जमाणे एगयओ दो त्रिधा क्रियमाणः एकतः द्वौ परमाणु- तीन भागों में विभक्त होने पर-एक ओर दो परमाणुपोग्गला,एगयओ असंखेज्ज- पुद्गलौ, एकतः असंख्येयप्रदेशिक: स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ स्कन्धः भवति, अथवा एकतः परमाणु- असंख्येय प्रदेशी स्कन्ध होता है अथवा एक परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए पुद्गलः, एकतः द्विप्रदेशिकः स्कन्धः, ओर एक स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी खंधे, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे एकतः असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः ओर द्विप्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर भवइ जाव अहवा एगयओ परमाणु- भवति यावत् अथवा एकतः परमाणु- असंख्येय प्रदेशी स्कंध होता है यावत् पोग्गले, एगयओ दसपएसिए खंधे, पुद्गलः, एकतः दशप्रदेशिक: स्कन्धः, अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणुएगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भव; एकतः असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः पुद्गल, दूसरी ओर दस प्रदेशी स्कंध, अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, भवति, अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः, तीसरी ओर असंख्येय प्रदेशी स्कंध होता है एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे, एकतः संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणुएगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ, असंख्येयप्रदेशिक: स्कन्धः भवति, पुद्गल, दूसरी ओर संख्येय प्रदेशी स्कंध, अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः, एकतः तीसरी ओर असंख्येय प्रदेशी स्कंध होता है पाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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