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________________ परिशिष्ट-२: शब्दार्थ एवं शब्द ४१० भगवई बद्ध १२/९७ बीजबीजक १३/१४९-१६६ बुद्ध जागरिका १२/२०-२१ नव निधि १२/१६३-१६८ निकृति १२/१०२-१०७ निभिज्जमाण १६/१०६ निर्जीण १२/९७ निर्यानिक लयन १३/९८ निर्विष्ट १२/९७ निसीयंति १३/९८ निःसृत १२/९७ निःसृष्ट १२/९७ नेमि व्रतिरूपक १४/७४-७५ नोइंद्रिय उपयुक्त १३/५ भण्डन १२/१०२-१०७ भत्था १६/६-७ भवसिद्धिक १२/४९-५२ भव्यद्रव्य देव १२/१६३-१६८ भाइल्लगत्ताए १२/१३३-१५२ भावदेव १२/१६३-१६८ भिध्या १२/१०२-१०७ भिस १३/१४९-१६६ भेद १२/६९.८० भोगाशा १२/१०२-१०७ पउट्ट परिहार १५/७२-७३ पक्खिविराली १३/१४९-१६६ पणियभूमि १५/५३-५६ परंपर उपपन्नक १४/४-५ परंपर खेदोपपन्नक १४/१४ परंपर आहारक १३/५ परंपर निर्गत १४/९-१३ परंपरावगाढ १३/५ परंपरोपपन्नक १३/५ परपरिवाद १२/१०२-१०७ परम १४/१ परिपार्श्व १४/१ पप्फोडेमाणे १५/१२० परिचारणा १२/१२४ परिभायमाणा १२/४-५ परिभुञ्जमाणा १२/४.५ परिणमित १२/९७ परिवेढियं १६/७६-१०५ पर्याप्त १२/९७ पाक्षिक पौषध १२/४-५ पारिणामिकी १२/१०८-१११ पुयलि १५/१२० प्रज्ञापराध १४/१६-२० प्रतिकुंचन १२/१०२-१०७ प्रतिहार १२/१५४-१५८ प्रदेश संख्या परिवर्तन १२/२२-२५ प्रस्थापित १२/९७ प्रार्थना १२/१०२-१०७ मज्जारकड १५/१५२-१५५ मद १२/१०२-१०७ मनोमानसिक १३/११०-१२१ मयगत्ताए १२/१३३-१५२ मरण १३/१३०-१४५ मरणाशा १२/१०२-१०७ महत्तर १३/४३ महापइरिक्कतरा १३/४३ महापवेसणतरा १३/४३ महावित्थिण्णतर १३/४३ महोगासतरा १३/४३ मान १२/१०२-१०७ माया १२/१०२-१०७ मुंड १६/५१-५२ मुट्ठिए १६/६-७ मूर्छा १२/१०२-१०७ योग आत्मा १२/२०० रहसिरेणे १५/१७९ राग १२/१०२-१०७ रोष १२/१०२-१०७ लव सप्तम देव १४/८४-८८ लालपनता १२/१०२-१०७ लोभ १२/१०२-१०७ बंध परिवर्तन १२/२२-२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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