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श. १५ : सू. १८६,१६०
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भगवई
१८६. तए णं से दढप्पइण्णे केवली बहुई। ततः सः दृढ़प्रतिज्ञः केवली बहूनि वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, वर्षाणि केवलिपर्यायकं प्राप्स्यति, प्राप्य पाउणित्ता अपणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं आत्मनः आयुः शेषं ज्ञात्वा भक्तं पञ्चक्खाहिति, एवं जहा ओववाइए जाव प्रत्याख्यास्यति, एवं यथा औपपातिके सम्बदुक्खाणमंतं काहिति॥
यावत् सर्वदुःखानाम् अन्तं करिष्यति।
१८६. वह दृढ़प्रतिज्ञ केवली बहुत वर्षों तक केवली पर्याय को प्राप्त करेंगे, प्राप्त कर अपनी आयु का अन्त निकट जान कर भक्तप्रत्याख्यान करेंगे-अनशन स्वीकार करेंगे, इस प्रकार जैसा औपपातिक में बतलाया गया है वैसा यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे, तक बतलाना चाहिए।
१६०. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति यावत् विहरति।
१६०. भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही है यावत् विहरण कर रहे हैं।
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