________________
भगवई
२४३
श. १५ : आमुख
अत्याचार आदि का वृत्त उसकी आंतरिक चेतना की कलुषता का द्योतक है तथा अंत में चिरकालीन संसार-भ्रमण के पश्चात् मोक्ष प्राप्ति के साथ वृत्त समाप्त होता है। यह समग्र प्रसंग 'शिष्य द्वारा अपने गुरु का विरोध एवं अपलाप के भयंकर दुष्परिणाम का द्योतक है तथा विनय के लिए शिष्य- समुदाय को प्रेरित करता है।
गोशाल के संसार भ्रमण के वृत्तांत में जैन दर्शन के 'विभिन्न गतियों में जीव द्वारा गति आगति' के सिद्धांत को उजागर किया गया है जिसका विस्तृत विवेचन भगवती में ही चौबीसवें शतक से लेकर आगे के शतकों में उपलब्ध है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि प्रस्तुत शतक भगवती के उन महत्त्वपूर्ण शतकों में है जिसका अध्ययन जैन विद्या के विभिन्न पक्षों को बहुत ही मार्मिक रूप में उजागर करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org