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भगवई
२३५
श. १४ : उ. १० : सू. १५२-१५५
एवं चेव। एवं अणुत्तरविमाणे वि॥
एवं चैव। एवम् अनुत्तरविमानम् अपि।
पूर्ववत्। इसी प्रकार केवली अनुत्तर विमान को जानता-देखता है।
१५२. केवली णं भंते ईसिंपन्भारं पुढविं ईसिंपन्भारपुढवीति जाणइ-पासइ ?
केवली भदन्त! ईषत्प्राग्भारां पृथिवीम् ईषत्प्राग्भारापृथिवी इति जानातिपश्यति? एवं चैव।
१५२. भंते ! केवली 'ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी को यह ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी है'-ऐसा जानतादेखता है? पूर्ववत्।
एवं चेव॥
१५३. केवली णं भंते! परमाणुपोग्गलं
परमाणुपोग्गले त्ति जाणइ-पासइ ? एवं चेव। एवं दुपएसियं खधं, एवं जाव
केवली भदन्त! परमाणुपुद्गलं परमाणु- पुद्गलः इति जानाति-पश्यति। एवं चैव। एवं द्विप्रदेशिकं स्कन्धम्, एवं यावत्
१५३. भंते! केवली 'परमाणु पुद्गल को यह
परमाणु पुद्गल है' ऐसा जानता-देखता है? पूर्ववत्। इसी प्रकार केवली द्विप्रदेशिक स्कंध को जानता-देखता है, इसी प्रकार यावत्
१५४. जहा णं भंते! केवली अणंत- यथा भदन्त! केवली अनन्तप्रदेशिकं पएसियं खंधं अणंतपएसिए खंधे त्ति स्कन्धम् अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः इति जाणइ-पासइ, तहा णं सिद्धे वि जानाति-पश्यति, तथा सिद्धोऽपि अणंतपएसियं खंधं अणंतपएसिए खंधे अनन्तप्रदेशिकं स्कन्धं अनन्तप्रदेशिक: त्ति जाणइ पासइ?
स्कन्धः इति जानाति-पश्यति? हंता जाणइ-पासइ॥
हन्त जानाति-पश्यति।
१५४. भंते ! जैसे केवली 'अनंत प्रदेशी स्कंध
को यह अनंत प्रदेशी स्कंध है' ऐसा जानतादेखता है वैसे सिद्ध भी 'अनंत प्रदेशी स्कंध को यह अनंत प्रदेशी स्कंध है'-ऐसा जानता-देखता है? हां, जानता-देखता है।
भाष्य
१. सूत्र १३८-१५४
यह पद भवस्थ केवली के लिए प्रयुक्त है। सिद्ध मुक्त केवली हैं।
आधोवधिक, परमाधोवधिक के लिए द्रष्टव्य भगवई १/२०२२०६ का भाष्य।
१५५. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति।
१५५. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही
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