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श. १४ : आमुख
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भगवई
आत्मा और पुनर्जन्म का प्रतिपादन आगम साहित्य का प्रमुख कार्य रहा है। शालयष्टिका और उदुम्बरयष्टिका वृक्ष के बारे में गौतम की जिज्ञासा और महावीर का उत्तर प्रत्यक्ष ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण निदर्शन है।' इस आलापक से अकाम निर्जरा के महत्त्व का भी अंकन किया जा सकता है।
प्रस्तुत आगम के छठे शतक में आभामंडल का प्रशस्त वर्णन किया गया है।' प्रस्तुत शतक में बतलाया गया है - आभामंडल के परमाणु-पुद्गल अवभास, उद्योत, ताप और प्रभास करते हैं।' श्रमण निर्ग्रथों की तेजोलेश्या का उत्तरोत्तर होने वाला विकास एक साधक के लिए बहुत प्रेरक है।"
प्रस्तुत शतक का एक महत्त्वपूर्ण विषय है परिव्राजक अम्मड़ का प्रकरण
इस प्रकार यह शतक अन्यत्र अचर्चित और अनुपलब्ध विषय सामग्री की दृष्टि से बहुत मननीय है।
१. वही, १४/१०१-१०६ २. भ., ६/२०-२३
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३. वही, १४ / १२३-१२५ ४. वही, १४ / १३६
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