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आमुख
प्रस्तुत शतक में पुनर्जन्म के विषय में अनेक नियमों का निर्देश मिलता है। इस विषय में सूत्र ३ से सूत्र ३८ तक का विषय मननीय है।
जैन दर्शन के अनुसार दिशा आकाश का ही एक विभाग है। प्रस्तुत शतक में उनकी उत्पत्ति के मूल का निर्देश है।' इस विषय की विशद जानकारी के लिए प्रस्तुत आगम का दसवां शतक,' आचारांग भाष्य' तथा श्री भिक्षु आगम विषय कोश द्रष्टव्य हैं।
प्रस्तुत शतक में लोक की व्याख्या पंचास्तिकाय के आधार पर की गई है। पंचास्तिकाय का निरूपण प्रस्तुत आगम के अनेक शतकों में हुआ है - प्रस्तुत प्रकरण में उनके कार्यों का विवरण दिया गया है, वह अपूर्व है । * पंचास्तिकाय के अवगाह की चर्चा भी महत्त्वपूर्ण है।
भगवान् महावीर ने आठ राजाओं को दीक्षित किया था। उनमें एक नाम है उद्रायण।" सौवीर के अधिपति उद्रायण की प्रव्रज्या का उल्लेख उत्तराध्ययन में मिलता है।" स्थानांग और उत्तराध्ययन में उद्रायण का केवल नामोल्लेख है।
उदायण शब्द जैन साहित्य में बहुत प्रचलित है इसलिए उदायन के लिए उदायण का प्रयोग किया जाता रहा है। यह सही नहीं है। सिन्धु सौवीर के राजा का वास्तविक नाम उद्रायण है।
प्रस्तुत शतक में उसका संक्षिप्त जीवन-परिचय भी उपलब्ध है। उसकी विशेष जानकारी उत्तरवर्ती साहित्य में मिलती है। सिन्धु-सौवीर जनपद - सिन्ध सौवीरेसु जनवएसु-इस वाक्यांश से ज्ञात होता है कि सिन्धु सौवीर में बहुवचन का प्रयोग अनेक देशों के समुच्चय का सूचक है। आधुनिक विद्वान् सौवीर को सिन्धु और झेलम नदी के बीच का प्रदेश मानते हैं। कुछ विद्वान् इसे सिन्धु नदी के पूर्व में मुल्तान तक का प्रदेश मानते हैं । "
सिन्धु- सौवीर ऐसा संयुक्त नाम ही विशेष रूप से प्रचलित है किन्तु सिन्धु और सौवीर पृथक् पृथक् राज्य थे। उत्तराध्ययन में उद्रायण को सौवीरराज कहा गया है।" उत्तराध्ययन की टीका से भी इसकी पुष्टि होती है। इसमें उद्रायण को सिन्धु, सौवीर आदि सोलह जनपदों का अधिपति बतलाया गया है। 12 सिन्धु, सौवीर आदि सोलह जनपदों के नाम उपलब्ध नहीं हैं।
प्रस्तुत प्रकरण में उद्रायण की दो रानियों का उल्लेख मिलता है- पद्मावती और प्रभावती । प्राचीन भारत वर्ष के लेखक ने इस विषय में दो मान्यताएं बतलाई है - पहली मान्यता के अनुसार उद्रायण का विवाह ईस्वी पूर्व ५४३ में वैशाली गणराज्य के प्रमुख चेटक की पुत्री प्रभावती के साथ तथा ईस्वी पूर्व ५२० में पद्मावती के साथ हुआ।
दूसरी मान्यता के अनुसार उद्रायण का विवाह ईस्वी पूर्व ५८४ में प्रभावती से हुआ । "
प्रस्तुत शतक में शरीर, भाषा और मन के संबंध का विस्तृत विवेचन किया गया है। इस विवेचन से फलित होता है कि जीव के साथ शरीर का अव्यवहित संबंध है, भाषा और मन का संबंध व्यवहित है इसलिए भाषा और मन को अचित्त तथा शरीर को सचित्त बतलाया गया है । १४
आगम साहित्य में मरण के अनेक वर्गीकरण हैं। भगवती के दूसरे शतक में बालमरण के बारह प्रकार बतलाए गए हैं, उनमें
१. भ. १३/५० -५४
२. भ. १०/१-७
३. आ. भाष्य १/४
४. भिक्षु आगम विषय कोश, पृ. ५६७-५६८
५. भ. १३/५५-६०
६. भ. १३/७४-८७
७. ठाणं ८/४१
८. उत्त. १८/४७
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६. इण्डिया इज डिस्क्राइन्ड इन अर्ली ट्रेक्टस ऑफ बुद्धिज्म एण्ड जैनिज्म,
पृ. ७०
१०. पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्शिएन्ट इंडिया, पृ. ५०७, नोट- १।
११. उत्त. १८/४८
१२. सुखबोधा प. २५२
१३. प्राचीन भारत वर्ष पृ. १३१-१३५
१४. भ. १३ / १२४ - १२८
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