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________________ श. १२: उ.१०: सू. २२६ १०४ भगवई ६. स्यात् सत् हैं, स्यात् अवक्तव्य है। १०. स्यात् सत् नहीं है, स्यात् अवक्तव्य है। ११. स्यात् सत् नहीं है, स्यात् अवक्तव्य हैं। १२. स्यात् सत् नहीं हैं, स्यात् अवक्तव्य है। १३. स्यात् सत् है, स्यात् सत् नहीं है, स्यात् अवक्तव्य ११ असंयोगी भंग-१-३ आ | नो । द्विसंयोगी भंग ४-१५ आ. नो.|| आ. अ. नो. अ. ११ १ १ १२ १२ २१ ॥ २१ २१ २२ त्रि संयोगी भंग १६-१६ आ. नो. आ. अ. नो. अ. १ | 'पंच प्रदेशी स्कंध भंग २२ असंयोगी भंग-१-३ आ. | नो. द्विसंयोगी भंग ४-१५ आ. नो. | आ. अ. नो. अ. ११ १२ वृत्तिकार के अनुसार त्रिप्रदेशिक स्कंध के तेरह भंगों में प्रथम तीन भंग सकलादेश (प्रमाण) के हैं। चौथा, पांचवां, छठा भंग एक वचन और बहुवचन की विवक्षा से किए गए हैं। दो प्रदेश का एक प्रदेश में अवगाह होता है, इस हेतु से दो प्रदेशों में एक वचन की विवक्षा की गई है। जहां भेद की विवक्षा है वहां बहुवचन का प्रयोग किया गया है। द्रष्टव्य स्थापना स्वपर्याय से-आत्मा पर पर्याय से-नो आत्मा तदुभय पर्याय से-अवक्तव्य-आत्मा, नो आत्मा १. देश-एक वचन। २. देश-बहुवचन। • एक परमाणु : भंग ३ | आत्मा | नो आत्मा | अवक्तव्य द्विप्रदेशी स्कंध : भंग ६ असंयोगी भंग १-३ आत्मा | नो आत्मा | अवक्तव्य द्वि संयोगी-३ आ, नो, | आ, अ | नो. अ त्रिप्रदेशिक स्कंध : भंग १३ असंयोगी भंग १-३ | आ नो अ • चतुष्प्रदेशी स्कंध, भंग १९ द्विसंयोगी भंग-४-१२ आ. नो | आ. अ । नो. अ ११ । ११ । ११ १२ । १२ । २१ । २१ २१ त्रिसंयोगी भंग १३ | आ. | नो । अ १२ । १२ २१ । २१ २२ । २२ त्रिसंयोगी भंग १६-२२ २१ आ. १२ पंच प्रदेशी स्कंध के त्रिसंयोगी विकल्पों में आठवां भंग नहीं होता। छह प्रदेशी स्कंध के तेईस भंग होते हैं, उनमें आठवां भंग भी होता है २२ २२६. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ ॥ तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति यावत् विहरति। २२६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है, यावत् विहरण करने लगे। ३. भ. वृ. १२/२२०,२११-त्रिप्रदेशिकस्कंधे तु त्रयोदशभंगास्तत्र पूर्वोक्तेषु सप्तस्वाद्याः सकलादेशास्त्रयस्तथैव, तदन्येषु तु त्रिषु त्रयस्त्रय एकवचन-बहुवचनभेदात्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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