SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. १२ : उ. ६ : सू. १६७, १६८ १. सूत्र १६२-१६६ भव्यद्रव्य देव का अंतर जघन्यतः अंतमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष का बतलाया गया है। भवनपति और व्यंतर देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की बतलायी गयी है।' अंतर्मुहूर्त के विषय में अभयदेवसूरि ने तीन मतों का उल्लेख किया है प्रथम मत प्राचीन टीकाकार का है। उसके अनुसार कोई भव्यद्रव्य देव दस हजार वर्ष की व्यंतर और भवनपति की स्थिति में उत्पन्न होकर वहां से च्युत हो शुभ पृथ्वी आदि में उत्पन्न होता है। वहां अंतर्मुहूर्त्त रहकर मृत्यु को प्राप्त हो अंतर्मुहूर्त आयुष्य वाले संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होता है। उस समय वह भव्यद्रव्य देव हो जाता है। पंचविह-देवाणं अप्पाबहुयत्त-पदं १७. एएसि णं भंते ! भवियदव्वदेवाणं, नरदेवाणं, धम्मदेवाणं, देवातिदेवाणं, भावदेवाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा नरदेवा, देवातिदेवा संखेज्जगुणा, धम्मदेवा संखेज्जगुणा, भवियदव्वदेवा असंखेज्जगुणा, भावदेवा असंखेज्जगुणा ॥ १६८. एएसि णं भंते! भावदेवाणं भवणवासीणं, वाणमंतराणं, जोड़सियाणं, वेमाणियाणं - सोहम्मगाणं जाव अच्चुयगाणं, गेवेज्जगाणं, अणुत्तरोववाइयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अणुत्तरोववाइया भावदेवा, उवरिमगेवेज्जा भावदेवा संखेज्जगुणा, मज्झिमगेवेज्जा संखेज्जगुणा, हेट्ठिमगेवेज्जा संखेज्जगुणा, अच्चुए कप्पे देवा संखेज्जगुणा जाव आणयकप्पे देवा संखेज्जगुणा, सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, महासुक्के कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, लंतए कप्पे देवा भाष्य Jain Education International ८८ पञ्चविध- देवानाम् अल्पबहुकत्व-पदम् एतेषां भदन्त ! भव्यद्रव्यदेवानां नरदेवानां धर्मदेवानां देवातिदेवानां, भावदेवानां च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा? विशेषाधिकाः वा? १. पण्ण. ४ / ३१, १६५ । २. (क) भ. वृ. १२ / १६२ - भव्यद्रव्यदेवस्यान्तरं जघन्येन दशवर्षसह दूसरा मत नामोल्लेख रहित है। उसके अनुसार बद्धायु जीव ही भव्य देव के रूप में इष्ट है । जघन्य स्थिति का देव देव - अवस्था से च्युत होकर अंतर्मुहूर्त्त स्थिति वाले भव्यद्रव्य देव रूप में उत्पन्न होता है । उत्पन्न होने के अंतर्मुहूर्त के पश्चात् उसके तीसरे भाग में वह देवआयु का बंध करता है। वह भी अंतर्मुहूर्त काल है। इस प्रकार अंतर्मुहूर्त का अंतर काल हो जाता है। तीसरा मत- जन्म और मरण के अंतराल में होने वाला अंतर्मुहूर्त। इन तीनों मतों में बद्धायु मत अधिक समीचीन लगता है। नरदेव, धर्मदेव और भावदेव के अंतर काल के लिए भगवई १२ / १६२ - १६६ की वृत्ति द्रष्टव्य है। गौतम! सर्वस्तोकाः नरदेवाः, देवातिदेवाः संख्येयगुणाः, धर्मदेवाः संख्येयगुणाः, भव्यद्रव्यदेवाः असंख्येयगुणाः, भावदेवाः असंख्येयगुणाः । एतेषां भदन्तः भावदेवानां भवनवासिनाम्, वानमन्तराणाम्, ज्योतिष्काणाम्, वैमानिकानाम् - सौधर्मकाणां यावत् अच्युतकानाम्, ग्रैवेयकानाम्, अनुत्तरोपपातिकानां वा, कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा? विशेषाधिकाः वा? गौतम! सर्वस्तोकाः अनुत्तरोपपातिकाः भावदेवाः, उपरितनग्रैवेयकाः भावदेवाः संख्येयगुणाः, मध्यमग्रैवेयेकाः संख्येयगुणाः, अधस्तनग्रैवेयकाः संख्येयगुणाः, अच्युते कल्पे देवा: संख्येयगुणाः यावत् आनतकल्पे देवाः संख्येयगुणाः सहस्रारे कल्पे देवाः असंख्येयगुणाः, महाशुक्रे कल्पे देवाः असंख्येयगुणाः, लन्तके कल्पे देवाः भगवई For Private & Personal Use Only पंचविध देवों का अल्प - बहुत्व पद १६७. भंते! इन भव्यद्रव्यदेवों, नरदेवों, धर्मदेवों, देवातिदेवों और भावदेवों में कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे अल्प नरदेव, देवातिदेव उससे संख्येय गुण अधिक, धर्मदेव उससे संख्येय 'गुण अधिक, भव्यद्रव्य देव उससे असंख्य गुण अधिक और भावदेव उससे असंख्य गुण अधिक हैं। १६८. भंते ! इन भावदेवों-भवनवासी देवों, वाणमंतर देवों, ज्योतिष्क देवों और वैमानिक देवों-सौधर्म यावत् अच्युतकल्प, ग्रैवेयक और अनुत्तरोपपातिक देवों में कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे अल्प अनुत्तरोपपातिक भावदेव, उपरि ग्रैवेयक भावदेव उससे संख्येय गुण अधिक, मध्यम ग्रैवेयक उससे संख्येय गुण अधिक, अधस्तन ग्रैवेयक उससे संख्येय गुण अधिक, अच्युतकल्पवासी देव उससे संख्येय गुण अधिक यावत् आनतकल्पवासी देव उससे संख्येय अधिक महाशुक्रकल्पवासी देव उससे असंख्य गुण अधिक, लान्तककल्पवासी त्राण्यन्तर्मुहूर्त्ताभ्यधिकानि । (ख) भ. जो. ४ / २६७ /६२। www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy