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भगवई
गोयमा ! असुरकुमाराणं देवानं अहे गइविसाए सीहे सीहे चैव तुरिए-तुरिए चैव, उद्धं गद्द विसए अप्पे अप्पे चैव मंद-मंदे चेव । वेमाणियाणं देवाणं उड्ढं गइविसए सीहे - सीहे चेव । तुरिए-तुरिए चेव, अहे गइविसए अप्पे अप्पे चैव गंदे-गंदे चैव
जावतियं खेत्तं सक्के देविंदे देवराया उड्द्धं उप्पयइ एक्केणं समएणं, तं वज्जे दोहिं, जं बन्जे दोहिं तं चमरे तिहि सच्चत्थोवे सक्करस देविंदस्स देवरण्णो उड्ढलोयकंडए, अहे लोकंड संखेज्जगुणे ।
जावतियं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया अहे ओवयइ एक्केणं समएण, तं सक्के दोहिं, जं सक्के दोहिं तं वज्जे तीहिं सव्वत्योचे चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो अहेलोयकंडए, उड्ढलोय-कंडए संखेज्जगुणे ।
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एवं खलु गोयमा सक्केणं देविदेणं देवरण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहत्थिं गेण्डित्तए |
१२०. सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो उड्ढं अहे तिरियं च गविसयस्स कपर कयरेहिंतो अप्पे वा? बहुए वा? तुल्ले या? विसेसाहिए
वा?
गोयमा! सव्वत्थवं खेतं सके देवि देवराया अहे ओवयइ एक्केणं समएणं, तिरियं संखेज्जे भागे गच्छ, उह संखेने भागे गच्छ ॥
१२१. चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररण्णो उन्हें अहे तिरियं च मदविसयस्स कवरे करेहिंतो अप्पे वा? बहुए वा? तुल्ले वा ? विसेसाहिए वा? गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया उड्ढं उप्पयइ एक्केणं समएणं, तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ, अहे संखेज्जे भागे गच्छइ ॥
१२२. वज्जरसनं भंते! उड्हें अहे तिरियं व
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गोत्तम! अमुरकुमाराणां देवानाम् अधोगतिविषयः शीघ्र शीघ्रश्वेव त्वरित त्वरितश्चैव ऊर्ध्वं गतिविषयः अल्पाल्पश्चैव मन्द-मन्दश्चैव । वैमानिकानां देवानाम् ऊर्ध्वं गतिविषयः शीघ्र - शीघ्रश्चैव त्वरित त्वरितश्चैव, अधोगतिविषयः अल्पाल्पश्चैव मन्द-मन्दश्चैव । यावत् क्षेत्रं शक्रः देवेन्द्रः देवराजः ऊर्ध्वम् उत्पतति एकेन समयेन, तद् वज्रं द्वाभ्यां यद् वज्रं द्वाभ्यां तत् चमरः त्रिभिः सर्वस्तोकः शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य ऊर्ध्वलोककण्डकः, अधोलोककण्डकः संख्येयगुणः ।
यावत् क्षेत्रं चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः अधः अवपतति एकेन समयेन तत् शक्रः द्वाभ्यां यत् शक्रः द्वाभ्यां तद् वनं त्रिभिः सर्वस्तोकः चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरराजस्य अधोलोककण्डकः, ऊर्ध्वलोकण्डकः संख्यगुणः ।
एवं खतु गीतम शक्रेण देवेन्द्रेण देवराजेन चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः नो संशकितः स्वहस्तेन ग्रहीतुम्॥
शक्रस्य भदन्त ! देवेन्द्रस्य देवराजस्य ऊर्ध्वमधरितर्यक् च गतिविषयस्य कतरः कतरेभ्यः अल्पो वा? को वा? तुल्यो का? विशेषाधिको
या?
गीतम! सर्वस्तोक क्षेत्र : देवेन्द्रः देवराजः अधः अवपतति एकेन समयेन तिर्यक संख्येयान् भागान् गच्छति, ऊर्ध्वं संख्येयान् भागान् गच्छति।
चमरस्य भदन्त ! असुरेन्द्रस्य असुरराजस्य ऊर्ध्वमधस्तिर्यक् व गतिविषयस्य कतरः - रेभ्यः अल्पो वा? बहुको वा? तुल्यो वा ? विशेषाधिको वा?
गौतम! सर्वस्तोक क्षेत्र चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः ऊर्ध्वम् उत्पतति एकेन समयेन, तिर्यक् संख्येयान् भागान् गच्छति, अधः संख्येयान् भागान् गच्छति ।
यमस्य भदन्त ऊर्ध्वमवस्तिर्यक च गति
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श.३ : उ.२ : सू. ११६-१२२
गीतम! असुरकुमार देवों का नीचे लोक में गति का विषय शीघ्र शीघ्र और त्वरित त्वरित है, ऊंचे लोक में उनकी गति का विषय अल्प- अल्प और मंद-मंद है। वैमानिक देवों का ऊंचे लोक में गति का विषय शीघ्रशीघ्र और त्वरित - त्वरित है, नीचे लोक में उनकी गति का विषय अल्प- अल्प और मंद-मंद है। देवेन्द्र देवराज शक्र ऊंचे लोक में एक समय में जितने क्षेत्र में चला जाता है, उतने क्षेत्र के अवगाहन में वज्र को दो समय लगते हैं। वज्र का जितने क्षेत्र के अवगाहन में दो समय लगते हैं, उतने क्षेत्र के अवगाहन में चमर को तीन समय लगते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वलोक- कण्डक सबसे थोड़ा, अधोलोक - कण्डक उससे संख्या
असुरेन्द्र असुरराज चमर नीचे लोक में एक समय में जितने क्षेत्र में चला जाता है, उतने क्षेत्र के अवगाहन में शक्र को दो समय लगते हैं। शक्र को जितने क्षेत्र के अवगाहन में दो समय लगते हैं उतने क्षेत्र के अवगाहन में वज को तीन समय लगते है। असुरेन्द्र असुरराज चमर का अधोलोक - कण्डक सबसे थोड़ा, ऊर्ध्वलोकause उससे संख्येयगुना ।
गौतम! इस प्रकार देवेन्द्र देवराज शक्र अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को नहीं पकड़ सकता ।
१२०. गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की ऊंची, नीची और तिरछी गति के विषय में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है?
गौतम देवेन्द्र देवराज शक एक समय में सबसे थोड़ा क्षेत्र अधोलोक को अवगाहित करता है। तिरछे लोक में वह उससे संख्येय भाग अधिक गति करता है और ऊर्ध्वलोक में उससे संख्येय भाग अधिक गति करता है।
१२१ भन्ते! असुरेन्द्र असुरराज चमर की ऊंची, नीबी और तिरछी गति के विषय में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है?
गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर एक समय में सबसे थोड़ा क्षेत्र ऊर्ध्वलोक को अवगाहित करता है। तिरछे लोक में वह उससे संख्येय भाग अधिक गति करता है और अधोलोक में उससे संख्येय भाग अधिक गति करता है।
१२२ भन्ते वन की ऊंची, नीची और तिरछी गति के
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