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भगवई
बेलन का आधार वर्तुल है। इस वर्तुल का क्षेत्रफल = 7 (त्रिज्या) '
बेलन का घनफल = (त्रिज्या ) x ऊंचाई इस समीकरण में का मान लिया गया है।' क्षेत्र मान कोष्ठक के आधार पर १ योजन मान क्षेत्र के ७६८००० उत्सेध - अंगुल होते हैं । १ उत्सेध - अंगुल के ८५ देवकुरु- उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यो के बालाग्र होते हैं; अतः
१ योजन = ८० X ७६८००० देवकुरु- उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यों के
वालाग्र*
व्यास = ८७ x ७६८०००
.. त्रिज्या - ८ x ७६८००० दे.उ.क्षे.म. बालाग्र
२
ऊंचाई = ८० X ७६८००० दे. उ. क्षे. म. बालाग्र
अतः बेलन का घनफल
- (2) (८' x ७६८०००) '
=
• ३३०, ७६२, १०४, २४६, ५६२, ५४२, १९९, ६०९, ७५३, ६००,०००,०००,० घन दे. उ. क्षे. म. बालाग्र
= ३.३० x १० घन दे. उ. क्षे. म. बालाग्र लगभग
इस प्रकार बेलन में समाहित बालाग्र की संख्या = ३.६ x १०३६
हैं। ये बाला चार प्रकार से बाहर निकाले जाते हैं, जिसके फलस्वरूप चार प्रकार के पल्योपम होते हैं:
१. बादर उद्धार पल्योपम --- प्रति समय एक बालाग्र कुएं में से बाहर निकाला जाए। जितने काल में वह खड्डा खाली हो जाए, उतने काल को बादर उद्धार पल्योपम कहते हैं। बादर उद्धार पल्योपम केवल औपचारिक पल्योपम है, क्योंकि इसका मान संख्यात समयों का है। प्रति समय एक बालाग्र बाहर निकालने पर,
३.३x १०५
समयों में कुआं खाली हो जायेगा। इस प्रकार एक बादर उद्धार पल्योपम
३.३ X १०३६ समय
२. सूक्ष्म उद्धार पल्योपम — पूर्वोक्त बालाग्रों में से प्रत्येक बालाग्र
के 'असंख्य' खण्ड किये जाते हैं। प्रत्येक खण्ड केवल चक्षु द्वारा देखे जाने वाले
२९३
१. इसका विवेचन परिशिष्ट - ३ में किया गया है।
२. अनुयोगद्वार सूत्र, उपमा विषय तथा लोकप्रकाशः १-६८ से १२१ के आधार पर ।
३. वर्तुल की परिधि को वर्तुल के व्यास का भाग देने पर आने वाली संख्या को कहते हैं।
Π
इसका संख्यात्मक मूल्य निकालने के लिए अति प्राचीन काल से प्रयत्न किया गया है। जैन
आगमों में के लिए 'तीन से कुछ अधिक' ये शब्द प्रयुक्त हुए हैं— (देखें, अनुयोगद्वार सूत्र,
元
११ ६
उपमा विषय) आगमेतर जैन ग्रन्थों में इसका मूल्य १० अथवा लिया गया है। (देखें त्रिलोकसार, गाथा १७; तिलोयपण्णती, १-११७; लोकप्रकाश, १-७)। जैनेतर प्राचीन ग्रन्थों में भी के लिए V१० का उपयोग हुआ है। (देखें, प्राचीन भारत में गणित का योग, पृ. ८) षट्खण्डागम पर वीरसेनाचार्य ( ई. सन् ८१६) रचित धवला टीका में दिये गए एक श्लोक के १६ १६ अनुसार ग का मूल्य (३+ : + 2) होता है। देखें, षट्खण्डागम, १-३-२ में ११३ ११३ X व्यास श्लोक १४, पुस्तक ४, पृ. ४२। इसमें प्रथम पद में स्थित संख्या का मान ३.१४१५९२९२......
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सूक्ष्मतम पदार्थ से भी असंख्य गुना छोटा होता है। इस प्रकार के बालाग्र-खण्डों में से प्रति समय एक बालाग्र खण्ड कुएं में से बाहर निकालने पर जितने काल में समग्र कुंआ रिक्त हो जाता है, उतने काल को 'सूक्ष्म उद्धार पत्यो
(सू.उ. प.)
कहते हैं। इस प्रकार
१ सू.उ. प. = { ( ३.३ x १० ) x असंख्यात} समय
३. बादर अद्धा पल्योपम — पूर्वोक्त रीति से बालाओंों से भरे हुए कुंएं
में से प्रति १०० वर्ष में एक बालाग्र निकालने पर जितने काल में समग्र कुंआं रिक्त हो जाता है, उतने काल को 'बादर अद्धा पल्योपम' कहते हैं। संख्यात वर्षों का मान होने के कारण यह भी केवल औपचारिक पल्योपम है। प्रति १०० वर्ष में १ केशाग्र बाहर निकालने पर,
१०० X ३.३ X १० वर्षों
श. ६ ३.७: सू. १३३,१३४
:
में कुंआं रिक्त हो जाता है। इस प्रकार
एक बादर अद्धा पल्योपम
= १०० x ३.३ X १० वर्ष
३. ३ X १० वर्ष
४. सूक्ष्म अद्धा पल्योपम—सूक्ष्म उद्धार पल्योपम की तरह प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड किये जाते हैं। प्रति १०० वर्ष में एक बालाग्र खण्ड बाहर निकालने पर जितने काल में कुंआ रिक्तहो जाता है, उतने काल को 'सूक्ष्म अद्धा पत्योपम' (सू.अ.प.) कहते हैं। इस प्रकार,
असंख्यात काल मान कोष्ठक
-
१ सू.अ.प. = { ( ३.३. x १०६ ) x १०० x असंख्यात) वर्ष = { ( ३.३x १० ) x असंख्यात वर्ष
-
१ सूक्ष्म अद्धा पल्योपम = ३. ३ X १०" असंख्यात समय १ सूक्ष्म उद्धार पल्योपम = ३.३ X १०८ असंख्यात वर्ष दिगम्बर- परम्परा के अनुसार "
श्वेताम्बर - परम्परा में बताये गये कुंएं के वर्णन में जो योजन उत्सेधअंगुल से निष्पन्न था, वह वहां प्रमाणांगुल से निष्पन्न माना गया है। १ प्रमाणांत के ५०० उत्सेध - अंगुल होते हैं। अतः
१ योजन = (७६८००० x ५००x८५ ) उत्तम भोग भूमि के बालाग्र अतः बेलन का घनफल
=
Xx (७६८००० x ५००X८७ ) ०
४१३, ४५२, ६३०, ३०८, २०३, १७७, ७४९, ५१२, १९२,०००,०००,०००,०००,०००,००० घन उत्तम भोग भूमि बालाग्र
=
आता है। आधुनिक गणित शास्त्र के अनुसार का मूल्य निम्न श्रेणी से व्यक्त होता है: १ १ १ १ T = ४ (१..) इसका मूल्य १४ दशमलेवे स्थान तक निकालने पर,
५
३
७
११
| = ३.१४१५९२६५३८९७९ आता है। (देखें, ज्योमेट्री, ले. चार्ल्स एफ बूमफिल्ड, रोबर्ट आईकोल्फ और मेरील ई. शान्कस, पृ. २०४ २०५ ) |
३६
५. ग. का मूल्य ३.९४९५ लेने पर इस संख्या का मूल्य ३.०६ x १० आता है।
६. वस्तुतः तो छः प्रकार से निकाले जाते हैं, किन्तु अंतिम दो प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में उपयोगी नहीं होने के कारण नहीं दिये गये हैं।
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७. तिलोयपणती, १-११९ से १३० के आधार से।
८. यहां पर भी का मूल्य १९/६ लिया गया है।
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