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श. ६: उ. ४: सू. ५४-६३
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भगवई
६. संज्ञी
भंग
२०. अनेक जीव और एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय-वर्जित शेष
दंडक
७. असंज्ञी
सप्रदेश भी, अप्रदेश भी
भंग २१. अनेक एकेन्द्रिय २२. तीन विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय एवं मनुष्य ३ २३. असंज्ञी से उत्पन्न होने वाले अनेक नारक, भवनपति, ६ व्यंतर और मनुष्य
८. नोसंज्ञी नोअसंज्ञी
भग
२४. अनेक मनुष्य, अनेक सिद्ध
३
९. सलेश्य
भंग
२५. एक जीव २६. एक नारक यावत् एक वैमानिक २७. अनेक जीव २८. एकेन्द्रिय-वर्जित अनेक नारक यावत् अनेक वैमानिक २९. अनेक एकेन्द्रिय
नियमत: सप्रदेश स्यात् सप्रदेश, स्यात् अप्रदेश नियमत: सप्रदेश
३
सप्रदेश भी, अप्रदेश भी
१०. कृष्ण-, नील-, कापोत-लेश्यी
भंग
स्यात् सप्रदेश, स्यात् अप्रदेश सप्रदेश भी, अप्रदेश भी
३०. एक जीव, एक नारक यावत् एक व्यंतर ३१. अनेक जीव और अनेक एकेन्द्रिय ३२. अनेक नारक, भवनपति, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और व्यंतर
११. तेजोलेश्यी
भंग
३३. अनेक भवनपति, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, व्यंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक ३४. अनेक पृथ्वी, अप्, वनस्पति
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