SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय सहयोगानुभूति जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवर्द्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उसके वाचना - काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह सफल नहीं हो सका। अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थ दृष्टि - समन्वित तथा सपरिश्रम होगी, तो वह अपने-आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारंभ हुआ। १२ भगवई हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्य श्री तुलसी रहे हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कर्म के अनेक अंग हैं—पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में गुरुदेव का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति - बीज है । प्रस्तुत ग्रन्थ भगवती का सानुवाद और सभाष्य संस्करण है। प्रथम खण्ड में भगवती के प्रथम दो शतक व्याख्यात हैं। दूसरे खण्ड में तृतीय शतक से सप्तम शतक तक व्याख्यात हैं। मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद, भाष्य और उनके सन्दर्भ - स्थल तथा परिशिष्ट - ये सब प्रस्तुत संस्करण के परिकर हैं। भाष्य के श्रुत लेखन एवं सम्पादन में युवाचार्य महाश्रमण मेरे सहयोगी रहे हैं। संस्कृत छाया एवं अनुवाद कार्य साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी ने संपन्न किया है। शोध कार्य और सम्पादन में मुनि हीरालालजी, मुनि श्रीचन्दजी, मुनि महेन्द्रकुमारजी और मुनि विमलकुमारजी सहयोगी रहे हैं। वृत्ति का संपादन गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के सक्रिय सान्निध्य में मुनि हीरालालजी, साध्वी जिनप्रभाजी और साध्वी कल्पलताजी ने किया। अन्य परिशिष्टों के निर्माण में मुनि हीरालालजी ने विशेष श्रम किया है। पाण्डुलिपि के लेखन में अनेक समणियों ने निष्ठापूर्वक श्रम किया है। Jain Education International प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में अनेक साधु-साध्वियों का योग है। गुरुदेव के वरद हस्त की छाया में बैठकर कार्य करने वाले हम सब संभागी हैं। फिर भी मैं उन सब साधु-साध्वियों के प्रति सद्भावना व्यक्त करता हूं जिनका इस कार्य में स्पर्श हुआ है। For Private & Personal Use Only आचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy