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________________ प्रकाशकीय मुझे यह लिखते हुए अत्यन्त हर्ष हो रहा है कि 'जैन विश्व भारती' द्वारा आगम-प्रकाशन के क्षेत्र में जो कार्य संपन्न हुआ है, वह मूर्धन्य विद्वानों द्वारा स्तुत्य और बहुमूल्य बताया गया है। हम बत्तीस आगमों का पाठान्तर शब्दसूची तथा 'जाव' की पूर्ति से संयुक्त सुसंपादित मूल पाठ प्रकाशित कर चुके हैं। उसके साथ-साथ आगम-ग्रन्थों का मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद एवं प्राचीनतम व्याख्या-सामग्री के आधार पर सूक्ष्म ऊहापोह के साथ लिखित विस्तृत मौलिक टिप्पणों से मंडित संस्करण प्रकाशित करने की योजना भी चलती रही है। इस शृंखला में आठ आगम ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं १. दसवेआलियं २. उत्तरज्झयणाणि ३. सूयगडो ४. ठाणं ५. समवाओ प्रस्तुत आगम भगवई विआहपण्णत्ती उसी शृंखला का छठा आगम है। बहुश्रुत वाचना-प्रमुख आचार्य श्री तुलसी एवं अप्रतिम विद्वान् संपादक-भाष्यकार आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने जो श्रम किया है, वह ग्रन्थ के अवलोकन से स्वयं स्पष्ट होगा। भगवई विआहपण्णत्ती खण्ड १ में प्रथम दो शतकों का प्रकाशन भाष्य-सहित सन् १९९४ में हो चुका है। प्रस्तुत खण्ड २ में तीसरे से सातवें शतक तक का समावेश है। भगवती-भाष्य के प्रथम खण्ड के प्रकाशन के पश्चात दो आगम और प्रकाशित हो चुके हैं ७. नन्दी ८. अनुओगदाराइ आयारो पर संस्कृत में आचारांग-भाष्यम् भी प्रकाशित हो चुका है। श्रद्धेय युवाचार्य श्री महाश्रमण के अतिरिक्त मुनि श्री हीरालालजी, मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी और मुनि श्री विमलकुमारजी ने इसे सुसज्जित करने में अनवरत श्रम किया है। संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा ने संपन्न किया है। ग्रंथ की पाण्डुलिपि तैयार करने में आदरणीय समणीवृन्द का बहुत सहयोग रहा है। प्रूफ-संशोधन में मुनिश्री अजितकुमारजी और मुनि श्री विनोदकुमारजी की भी सहभागिता रही है। ऐसे सुसम्पादित आगम ग्रन्थ को प्रकाशित करने का सौभाग्य जैन विश्व भारती को प्राप्त हुआ है। आशा है पूर्व प्रकाशनों की तरह यह प्रकाशन भी विद्वानों की दृष्टि में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। लाडनूं १ सितम्बर २००० श्रीचंद बैंगानी कुलपति, जैन विश्व भारती Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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