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सूयगडो १
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अध्ययन १ टिप्पण ८२ दीघनिकाय में संजय वेलट्ठपुत्त के अनिश्चयवाद ( या संशयवाद या अज्ञानवाद) का निरूपण इन शब्दों में मिलता है
'तुम पूछो कि क्या परलोक है तो यदि मुझे ज्ञात हो कि वह है तो मैं तुम्हें बतलाऊं कि परलोक है। मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, अन्यथा भी मैं नहीं कहता। मैं यह भी नहीं कहता कि वह नहीं है। मैं यह भी नहीं कहता कि वह नहीं नहीं है। परलोक नहीं है, परसोक नहीं नहीं है परलोक है भी और नहीं भी है परलोक न है और न नहीं है।
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"तुम पूछो कि क्या देवता है तो यदि मुझे ज्ञात हो कि वे हैं तो मैं तुम्हें बतलाऊं कि देवता है। मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, अन्यथा भी मैं नहीं कहता। मैं यह भी नहीं कहता कि वे नहीं हैं। मैं यह भी नहीं कहता कि वे नहीं नहीं है। देवता नहीं हैं, देवता नहीं नहीं है। देवता हैं भी और नहीं भी हैं देवता न हैं और न नहीं है।
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"तुम पूछो कि क्या अच्छे-बुरे कर्म का फल है तो यदि मुझे ज्ञात हो कि वह है तो मैं तुम्हें बतलाऊं कि अच्छे-बुरे कर्म का फल है । मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, अन्यथा भी मैं नहीं कहता। मैं यह भी नहीं कहता कि वह नहीं है। मैं यह भी नहीं कहता कि वह नहीं नहीं हैं। अच्छे-बुरे कर्म का फल है। अच्छे-बुरे कर्म का फल नहीं नहीं है । अच्छे-बुरे कर्म का फल है भी और नहीं भी है। अच्छे-बुरे कर्म का फल न है और न नहीं है।
तुम पूछो कि तथागत मरने के बाद होते हैं या नहीं होते तो यदि मुझे ज्ञात हो कि तथागत मरने के बाद होते हैं तो मैं तुम्हें बतलाऊं कि वे होते हैं और यदि मुझे ज्ञात हो कि तथागत मरने के बाद नहीं होते तो मैं बतलाऊं कि वे नहीं होते । मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, अन्यथा भी मैं नहीं कहता। मैं यह भी नहीं कहता कि वे नहीं होते। मैं यह भी नहीं कहता कि वे नहीं नहीं होते । तथागत मरने के बाद नहीं होते, वे नहीं नहीं होते, तथागत मरने के बाद होते भी हैं ओर नहीं भी होते । तथागत मरने के बाद न होते हैं और न नहीं होते हैं । '
पंडित राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है
'आधुनिक जैन दर्शन का आधार 'स्यादवाद' है, जो मालूम होता है कि संजय
के चार अंग वाले अनेकान्तवाद को
लेकर उसे सात अंग वाला किया गया है। संजय ने तत्त्वों (परलोक, देवता) के बारे में कुछ भी निश्चयात्मक रूप से कहने से इंकार करते हुए उस इन्कार को चार प्रकार कहा है
नहीं कह सकता ।
(१) है ? (२) नहीं नहीं कह सकता।
(३) है भी और नहीं भी नहीं कह सकता ।
(४) न है और न नहीं है— नहीं कह सकता ।
इसकी तुलना कीजिए जैनों के सात प्रकार के स्याद्वाद से
(१) है ? - हो सकता है । (स्याद अस्ति )
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हो सकता है। (स्याद् नास्ति )
(२) नहीं है ? नहीं भी (३) है भी और नहीं भी ? है भी और नहीं भी हो सकता है (स्यादस्ति च नास्ति च । उक्त तीनों उत्तर क्या कहे जा सकते है ? इसका उत्तर जैन 'नहीं' में देते हैं
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(४) 'स्याद' - ( हो सकता है) – क्या यह कहा जा सकता (वक्तव्य ) है ? नहीं, स्याद् अवक्तव्य है ।
(५) 'स्याद् अस्ति ' - क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, स्याद् अस्ति अवक्तव्य है ।
(६) 'स्याद् नास्ति ' - क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, स्याद् नास्ति अवक्तव्य है ।
(७) स्याद् अस्ति च नास्ति च क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, स्याद् अस्ति च नास्ति च अवक्तव्य है ।
दोनों को मिलाने से मालूम होगा कि जैनों ने अपने स्यादवाद की छह भंगियां बनाई है और उसके चौबे यह सातवां भंग तैयार कर अपनी सप्तभंगी पूरी की।
१. बीघनिकाय १।२।४।३१ ।
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संजय के पहले वाले तीन वाक्यों (प्रश्न और उत्तर दोनों) को अलग करके वाक्य 'न है और न नहीं है' को छोड़कर, 'स्पा' भी अवतव्य है
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