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सूयगडो १
अध्ययन: टिप्पण४९-५१
श्लोक २७: ४६. ध्यान-योग को (झाणजोगं)
भावनायोग, ध्यानयोग, तपोयोग आदि अनेक प्रकार के योग हैं । ध्यान के द्वारा होने वाली योग-प्रवृत्ति ध्यान योग है। चित्त का एक धारावाही होना एकाग्रता है और उसका विकल्पशून्य हो जाना निरोध है। एकाग्रता और निरोध-ये दोनों ध्यान हैं ।' ध्यान तीन प्रकार का है-मानसिक ध्यान, वाचिक ध्यान और कायिक ध्यान । इसे ध्यानयोग कहा जाता है। ५०. काया का व्युत्सर्ग करे (कायं वोसेज्ज)
इसका अर्थ है-देहासक्ति और दैहिक प्रवृत्ति का विसर्जन करना । ५१. जीवन पर्यन्त (आमोक्खाए)
आमोक्ष के दो अर्थ हैं१. जब तक मोक्ष प्राप्त न हो तब तक । २. जब तक शरीर न छूटे तब तक ।
१. जैन सिद्धान्त बीपिका, ६४१ : एकाग्रे मनःसन्निवेशनं योगनिरोधो वा ध्यानम् । २. ध्यानशतक, श्लोक ३७, वृत्ति : 'जो जत्थ समाहाणं होज्ज मणोवयणकायजोगाणं ।'...........''आह-मनोयोगसमाधानमस्तु,
वाक्काययोगसमाधानं तत्र क्वोपयुज्यते, न हि तन्मयं ध्यानं भवति ? अत्रोच्यते-तत्समाधान तावन्मनोयोगोपकारकम्, ध्यानमपि च तदात्मकं भवत्येव । यथोक्तम्'एवं विहा गिरा मे वत्तव्वा एरिसी न वत्तव्वा । इय वेयालियवक्कस्स भासओ बाइगं झाणं ।' 'तथा-सुसमाहियकर-पायस्स अकज्जे कारणमि जयणाए ।
किरियाकरणं जं तं काइयझाणं भवे जइणो ॥' ३. चूणि, पृ० १७३ : आमोक्षायेति यावन्मोक्षगमनं ताव.........."शरीरमोक्खो वा।
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