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सूपगडो १
१०२. मुक्त (अणायु
अनायु अर्थात् आयुष्य से रहित, मुक्त, सिद्ध है, उसकी दो स्थितियां हो सकती हैं। वह या तो अनायु अथवा अगले जन्म में देवाधिपति इन्द्र होता है । ' देखें- ६०५ का टिप्पण |
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अध्ययन ६ : टिप्पण १०२
इसका तात्पर्य है कि जो व्यक्ति अहंभाषित धर्म का सम्यक् अनुपालन करता हो जाता है, जन्म-मरण से छूट कर सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर लेता है
१. (क) चूर्णि पृ० १५० : जे तु ण सिज्भंति ते इंदा भवंति देवाधिपतयः आगमिष्यति आगमिस्सेण भवेण सुकुलुप्पत्तीए सिस्सिंति ।
(ख) वृत्ति, पत्र १५२ ।
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