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पंचमं अज्झयणं : पांचवां अध्ययन गरयविभत्ती : नरक-विभक्ति पढमो उद्देसो : पहला उद्देशक
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
१.पूच्छिसहं केवलियं महेसि कहंऽभितावा गरगा पुरत्या ? अजाणओ मे मुणि बूहि जाणं कहं णु बाला जरगं उर्वेति ? ॥१॥
अप्राक्षमहं कैवलिक महर्षि कथमभितापा नरकाः पुरस्तात् । अजानतो मे मुने ! ब्रूहि जानन्, कथं नु बाला नरकमपयन्ति ?॥
१. (सुधर्मा ने जंबू से कहा) मैंने केवल. ज्ञानी महर्षि महावीर से पूछा था कि
नरक में कैसा ताप (कष्ट) होता है ? हे मुने ! मैं नहीं जानता, आप जानते हैं इसलिए मुझे बताएं कि अज्ञानी जीव नरक में कैसे जाते हैं ?
२. एवं मए पुढे महाणुभावे इणमब्बवी कासवे आसुप्पण्णे। पवेयइस्सं दुहमट्ठदुग्गं आदीणियं दुक्कडिणं पुरत्या ।२।
एवं मया पृष्टो महानुभावः, इदमब्रवीत् काश्यपः आशुप्रज्ञः । प्रवेदयिष्यामि दुःखार्थं दुर्ग, आदीनिकं दुष्कृतिनं पुरस्तात् ।।
२. मेरे द्वारा ऐसा पूछने पर महानुभाव,
आशुप्रज्ञ, कश्यपगोत्रीय महावीर ने यह कहा-'दुःखदायी, विषम,' अत्यन्त दीन और जिसमें दुराचारी जीव रहते हैं, उस नरक के विषय में मैं तुम्हें बताऊंगा।
३. जे केइ बाला इह जीवियट्टी पावाइं कम्माइं करेंति रुद्दा। ते घोररूवे तिमिसंधयारे तिव्वाभितावे णरए पडंति ।।
ये केचिद् बाला इह जीवितार्थिनः, पापानि कर्माणि कुर्वन्ति रुद्राणि । ते घोररूपे तमिस्रान्धकारे, तीव्राभितापे नरके पतन्ति ॥
३. कुछ अज्ञानी मनुष्य जीवन के आकांक्षी
होकर रौद्र पापकर्म करते हैं। वे महावोर, सघन अंधकारमय,' तीव्र ताप वाले नरक में जाते हैं ।
४. तिव्वं तसे पाणिणो थावरे य तीवं त्रसान् प्राणिनः स्थावरांश्च, जे हिंसई आयसुहं पडुच्चा ।
यो हिनस्ति आत्मसुखं प्रतीत्य । जे लूसए होइ अदत्तहारी यो लूषको भवति अदत्तहारी, ण सिक्खई सेयवियस्स किचि ।। न शिक्षते सेव्यस्य किञ्चित् ॥
४. जो अपने सुख के लिए क्रूर अध्यवसाय
से त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करते हैं, अंगच्छेद करते हैं, चोरी करते हैं और सेवनीय (आचरणीय) का अभ्यास नहीं करते (वे नरक में जाते
हैं ।)
५. पागब्भि पाणे बहुणं तिवाई
अणिव्वुडे घायमुवेइ बाले। णिहो णिसं गच्छइ अंतकाले अहोसिरं कटु उवेइ दुग्गं ॥५॥
प्रागल्भी प्राणानां बहूनां अतिपाती, अनिर्वतः घातमुपैति बालः । न्यक् निशां गच्छति अन्तकाले, अधः शिरः कृत्वा उपैति दुर्गम् ।।
५. जो ढीठ मनुष्य" अनेक प्राणियों को मारते हैं, अशान्त हैं, वे अज्ञानी आघात को प्राप्त होते हैं। वे जीवन का अन्तकाल होने पर नीचे अंधकारपूर्ण रात्री को प्राप्त होते हैं और नीचे सिर हो दुर्गम नरक में उत्पन्न होते
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