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________________ समवायो समवाय १२ : सू० ४-१४ ४. विजया णं रायहाणी दुवालस विजया राजधानी द्वादश योजनशतसह- ४. विजया राजधानी की लम्बाई-चौड़ाई जोयणसयसहस्साई प्रायाम- स्राणि आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्ता। बारह लाख योजन की है। विक्खंभेणं पण्णत्ता। ५. बलदेव राम बारह सौ वर्ष की सम्पूर्ण आयु बिता कर देवगति को प्राप्त हुए।' ६. मन्दर पर्वत की चूलिका का मूल भाग बारह योजन चौड़ा है। ५. रामे णं बलदेवे दुवालस वाससयाइं रामो बलदेवः द्वादश वर्षशतानि सर्वायु: सव्वाउयं पालित्ता देवत्तं गए। पालयित्वा देवत्वं गतः । ६. मंदरस्स णं पव्वयस्स चलिआ मुले मन्दरस्य पर्वतस्य चुलिका मूले द्वादश दुवालस जोयणाई विक्खंभेणं योजनानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ता। पण्णत्ता। ७. जंबूदोवस्स णं दोवस्स वेइया मूले जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य वेदिका मूले द्वादश दुवालस जोयणाई विक्खंभेणं योजनानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ता। पण्णत्ता। ७. जम्बूद्वीप द्वीप की वेदिका का मूल भाग बारह योजन चौड़ा है। ११.४ाता ८. सव्वजहणिआ राई दुवालस- सर्वजघन्यिका रात्री द्वादशमौहत्तिका ८. सबसे छोटी रात बारह मुहूर्त की होती मुहुत्तिआ पण्णता। प्रज्ञप्ता। ६. सव्वजहणिओ दिवसो दुवालस- सर्वजघन्यको दिवसो द्वादशमौहत्तिकः ६. सबसे छोटा दिन बारह मुहूर्त का होता मुहुत्तिओ पण्णत्तो। प्रज्ञप्तः । १०. सव्वदृसिद्धस्स णं महाविमाणस्स सर्वार्थसिद्धस्य महाविमानस्य उपरि- १०. सर्वार्थसिद्ध महाविमान की उपरीवर्ती उवरिल्लाओ थूभिअग्गाओ तनात् स्तूपिकानात् द्वादश योजनानि स्तूपिका के अग्रभाग से बारह योजन वालस जोयणाई उड्ढं उप्पतिता ऊर्ध्वमुत्पतिता ईषत्प्राग्भारा नाम्नी ऊपर ईषद्-प्रारभारा नाम की पृथ्वी है। ईसिपब्भारा नामं पुढवी पण्णता। पृथ्वी प्रज्ञप्ता। ईसिपब्भाराए णं पुढवीए दुवालस ईषत्प्रारभारायाः पृथिव्या द्वादश नाम- ११. ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के बारह नाम हैं, नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-- धयानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-ईषदिति जैसे-ईषत्, ईषत्प्रारभारा, तनु, तनुकईसित्ति वा ईसिपब्भारत्ति वा वा ईषत्प्राग्भारेति वा तन्वीति वा तर , सिद्धि, सिद्धालय, मुक्ति, मुक्तालय, तणइ वा तणयतरित्ति वा सिद्धित्ति तनुकतरी इति वा सिद्धिरिति वा ब्रह्म, ब्रह्मावतंसक, लोकप्रतिपूरण और वा सिद्धालएत्ति वा मुत्तीति वा सिद्धालय इति वा मुक्तिरिति वा मुक्ता- लोकाग्रचूलिका। मत्तालएत्ति वा बभेत्ति वा लय इति वा ब्रह्मति वा ब्रह्मावतसक बंभवडेंसएत्ति वा लोकपडि- इति वा लोकप्रतिपूरणा इति वा पूरणेत्ति वा लोगग्गचूलिआई वा। लोकाग्रचूलिका इति वा। १२. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति एकेषां १२. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बारस नरयिकाणां द्वादश पल्योपमानि स्थितिः की स्थिति बारह पल्योपम की है। पलिओवमाई ठिई पण्णता। प्रज्ञप्ता। १३. पंचमाए पूढवोए अत्थेगइयाणं पञ्चम्यां पृथिव्या अस्ति एकेषां १३. पांचवीं पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की नेरइयाणं बारस सागरोवमाइं ने रयिकाणां द्वादश सागरोपमाणि स्थिति बारह सागरोपम की है। ठिई पण्णता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। सिपमा द्विति सिद्धालय १४. असुरकूमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं असुरकूमाराणां देवानां अस्ति एकेषां १४. कुछ असुरकूमार देवों की स्थिति बारह बारस पलिओवमाइंठिई द्वादश पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। पल्योपम की है। पण्णत्ता। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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