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________________ समवानो ३७५ प्रकोणक समवाय : सू० २४६-२४८ ना द्यूतञ्च १. गावी जवे य इत्थी पराइयो भज्जाणुराग परडडी माउया संगामे, रंगे। गोट्ठी, इय॥ १.गौ: स्त्री पराजितो भार्यानुरागः परद्धिः मातृका संग्राम:, रङ्गे। गोष्ठी, इति ।। १. गाय के द्वारा गिरना २. संग्राम में पराजय ३. चूत में पराजय ४. स्त्री का हरण ५. रण में पराजय ६. भार्या का हरण ७. गोष्ठी (राजसभा) में अपमान की अनुभूति ८. पर-ऋद्धि का प्रसंग ६. माता का अपमान । २४६. एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं नव एतेषां नवानां वासुदेवानां नव २४६. इन नौ वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु थे, पडिसत्तू होत्था, तं जहा- प्रतिशत्रवो बभूवुः, तद्यथा जैसे१. अस्सग्गीवे तारए, १. अश्वग्रीवः १. अश्वग्रीव तारकः, ६. बलि मेरए महु केढवे निसुभे य। मेरको मधुकैटभः निशुम्भश्च । २. तारक ७. प्रभराज" बलि पहराए (रणे? ) तह, बलिः प्रभराज: (प्रहरण:? ) तथा, ३. मेरक ८. रावण रावणे य नवमे जरासंधे ॥ रावणश्च नवमो जरासन्धः ।। ४. मधुकैटभ ६. जरासंध । ५. निशुंभ २. एए खलु पडिसत्तू, २. एते खलु प्रतिशत्रवः, ये कीत्तिपुरुष वासुदेवों के प्रतिशत्रु थे। कित्तोपुरिसाण वासुदेवाणं। कोतिपुरुषाणां वासुदेवानाम् । ये सब चक्र-योधी थे और ये सब अपने सव्वे वि चक्कजोहो, सर्वेपि चक्रयोधिनः, ही चक्र से वासुदेव द्वारा मारे गए। सव्वे वि हया सचक्केहि ॥ सर्वेपि हता: स्वचक्रः ।। FREP रामा:, २४७.१. एक्को य सत्तमाए, १. एकश्च सप्तम्यां, २४७. काल धर्म को प्राप्त होकर एक वासुदेव पंच य छटीए पंचमा एक्को। पञ्च च षष्ठयां पंचम्यां एकः । सातवीं पृथ्वी में, पांच छद्री पृथ्वी में, एक्को य चउत्थीए, एकश्च चतुर्थ्या, एक पांचवी पृथ्वी में, एक चौथी पृथ्वी कण्हो पुण तच्चपुढवीए॥ कृष्णः पुनस्तृतीयपृथिव्याम् ।। में और कृष्ण तीसरी पृथ्वी में गए। २. अणिदाणकडा रामा, २. अनिदानकृता सभी राम (बलदेव) निदान किए बिना सवेविय केसवा नियाणकडा। सर्वेपि च केशवा निदानकृताः । होते हैं और वे सभी ऊर्ध्वगामी होते उड्ढंगामी रामा, ऊर्ध्वगामिनो रामा:, हैं। सभी केशव (वासुदेव) निदानकेसव सव्वे अहोगामी॥ केशवाः पूर्वक होते हैं और वे सभी अधोगामी सर्वेऽधोगामिनः ।। होते हैं। ३. अद्वैतकडा रामा, ३. अष्टान्तकृता रामा, आठ राम (बलदेव) अंतकृत (मोक्षएगो पुण बंभलोयकप्पमि । एक: पुन: ब्रह्मलोककल्पे । गामी) हुए और एक (बलभद्र ) एक्का से गम्भवसही, एका तस्य गर्भवसतिः, ब्रह्मलोक कल्प में उत्पन्न हुआ। वह सिज्झिस्सइ आगमेस्साणं॥ सेत्स्यति आगमिष्यताम् (मध्ये) ॥ आगामी काल में एक गर्भवास कर सिद्ध होगा। एरवय-तित्थगर-पदं ऐरवत-तीर्थकर-पदम् ऐरवत-तीर्थकर-पद २४८. जंबुद्दीवे णं दोवे एरवए वासे जम्बूद्वीपे द्वीपे ऐरवते वर्षे अस्यां २४८. जम्बूद्वीप द्वीप के ऐरवत क्षेत्र में इस इमीसे ओसप्पिणोए चउवीसं अवपिण्यां चतविशतिः तीर्थकराः अवसपिणी में चौबीस तीर्थकर हुए थे, तित्थगरा होत्था, तं जहा- बभूवुः, तद्यथा जैसे१. चंदाणणं सुचंदं च, १. चन्द्राननं सूचन्द्रं च, १. चन्द्रानन ५. ऋषिदत्त अग्गिसेणं च नंदिसेणं च । अग्निषेणं च नन्दिषेणं च । २. सुचन्द्र ६. व्रतधारी इसिदिण्णं वयहारि, ऋषिदत्तं व्रतधारिणं, ३. अग्निषेण ७. श्यामचन्द्र वंदिमो सामचंदं च॥ वन्दामहे श्यामचन्द्रं च ॥ ४. नंदिषेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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