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________________ समवाश्रो डिपत्त पमत्तसंजय सम्मद्दिट्टि पज्जतय संखेज्जवासाज्य कम्म भूमग गन्भवक्कं तियम गुस्स आहारयसरीरे । - - १६६. आहारयसरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं देसूणा रयणी arti पडण्णा रणी । १६५. आहारयसरीरे णं भंते! कि संठिए आहारकशरीरं भदन्त ! किं संस्थितं १६५. भंते ! आहारक-शरीर किस संस्थान पण्णत्ते ? से संस्थित है ? प्रज्ञप्तम् ? गोयमा ! समचउरंस संठाणसंठिए गौतम ! पण्णत्ते । समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् । १६८. एवं जाव १६९. गेवेज्जस्स णं भंते ! देवस्स मारणंतिय समुग्धातेणं समोहयस्स यासरीरस्स के महालिया सरोरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ती विक्खभ बाहल्लेणं, _ जहणणं अहे जाव विज्जाहरसेढीओ, उक्कोसेणं अहे जाव अहोलोइया गामा, तिरियं जाव मनुस्सखेत्तं उड़ढं जाव सयाई विमाणाइं । ३५६ प्रमत्तसंयत सम्यग्रडष्टि- पर्याप्तकसंख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिगर्भावकान्तिक मनुष्य आहारकशरीरम् । १६७. तेयासरीरे णं भंते! कतिविहे तैजसशरीरं भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? १६७. भंते । तैजस शरीर कितने प्रकार का पण्णत्ते ? है ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्तेएगिदियतेया सरीरे य बेंदियतेयासरीरे य तेंदियतेयासरीरे य चरदियतेयासरीरेय पंचेंदियतेयासरीरे य । १७०. एवं अणुत्तरोववाइया वि । Jain Education International प्रकीर्णक समवाय: सू० १६५-१७१ सम्यकदृष्टि- पर्याप्तक - संख्येय वर्षायुष्ककर्मभूमि- गर्भावान्तिक मनुष्य आहारकशरीर नहीं है । आहारकशरीरस्य कियन्महती शरीरा - १६६. भंते ! आहारक- शरीर की शरीराववगाहना प्रज्ञप्ता ? गाना कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! गौतम ! जघन्यतः कुछ न्यून एक रत्नि और उत्कृष्टतः परिपूर्ण रत्नि । जघन्येन देशोनो रत्नि: उत्कर्षेण प्रतिपूर्णो रत्नि: । गौतम ! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्एकेन्द्रियतैजसशरीरं च द्वीन्द्रियतैजसशरीरं च त्रीन्द्रियतैजसशरीरं च चतुरिन्द्रियतैजसशरीरं च पञ्चेन्द्रियतैजसशरीरं च । एवं यावत् ग्रैवेयस्य भदन्त । देवस्य मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहतस्य तैजसशरीरस्य कियन्महती शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! शरीरप्रमाणमात्री विष्कम्भबाहल्याभ्यां आयामेन जघन्येन अधो यावत् विद्याधरश्रेणी, उत्कर्षेण अधो यावत् अधोलौकिकग्रामान् तिर्यक् यावत् मनुष्यक्षेत्रं उर्ध्वं यावत् स्वकानि विमानानि । एवं अनुत्तरोपपातिका अपि । १७१. एवं कम्मयसरीरं पि भाणिपव्वं । एवं कर्मशरीरमपि भणितव्यम् । गौतम ! वह सम-चतुष्कोण संस्थान से संस्थित है । For Private & Personal Use Only गौतम ! वह पांच प्रकार का है, जैसे- १. एकेन्द्रिय तैजस शरीर २. द्वीन्द्रिय तेजस शरीर ३. त्रीन्द्रिय तेजस शरीर ४ चतुरिन्द्रिय तेजस शरीर ५. पञ्चेन्द्रिय तैजस शरीर । १६८. इसी प्रकार प्रज्ञापना पद इक्कीस यहां वक्तव्य है । १६६. भंते! ग्रैवेयक देव के मारणान्तिक समुद्घात से समवहुत तेजस शरीर की शरीरावगाहना कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! वह चोड़ाई और मोटाई में शरीर प्रमाणमात्र, लंबाई में नीचे जघन्यतः विद्याधर की श्रेणी तक और उत्कृष्टतः अधोलौकिक गावों तक, तिरछे में मनुष्य क्षेत्र तक और अपनेअपने विमान की पताका तक होती है । १७०. इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों के विषय में भी जानना चाहिए । १७१. कार्मण शरीर की वक्तव्यता तैजस शरीर के समान ही है । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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