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समवाप्रो
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प्रकोणक समवाय : सू० १४३
संगहणी गाहा १. आसीयं बत्तीसं,
अट्ठावीसं तहेव वीसं च। अट्ठारस सोलसगं, अछुत्तरमेव बाहल्लं ॥
संग्रहणी गाथा आशीतं
द्वात्रिंशद्, अष्टाविंशतिः तथैव विंशतिश्च । अष्टादश
षोडशकं, अष्टोत्तरमेव बाहल्यम् ॥
१. नरकवासों का बाहल्य (मोटाई)पहली पृथ्वी का एक लाख अस्सी हजार योजन, दूसरी पृथ्वी का एक लाख बत्तीस हजार योजन, तीसरी पृथ्वी का एक लाख अट्ठाईस हजार योजन, चौथी पृथ्वी का एक लाख बीस हजार योजन, पांचवीं पृथ्वी का एक लाख अठारह हजार योजन, छट्ठी पृथ्वी का एक लाख सोलह हजार योजन और सातवीं पृथ्वी का एक लाख आठ हजार योजन।
२. तीसा य पण्णवीसा, त्रिंशद् च पञ्चविंशतिः,
पण्णरस दसेव सयसहस्साई। पञ्चदश दशैव शतसहस्राणि। तिण्णेगं पंचूणं, त्रीण्येक
पञ्चोनं, पंचेव अणुत्तरा नरगा॥ पञ्चैव अनुत्तरा नरकाः ॥ (दोच्चाए णं पुढवीए, तच्चाए णं (द्वितीयायां पृथिव्यां, तृतीयायां पुढवीए, चउत्थीए पुढवीए, पृथिव्यां, चतुर्थ्यां पृथिव्यां, पञ्चम्यां पंचमीए पुढवीए, छट्ठीए पुढवीए, पृथिव्यां, षष्ठयां पृथिव्यां, सप्तम्यां सत्तमीए पुढवीए-गाहाहिं पृथिव्यां-गाथाभिः भणितव्याः।) भाणियव्वा ।)
२. नरकावासों की संख्यापहली पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी पृथ्वी में पच्चीस लाख, तीसरी पृथ्वी
में पन्द्रह लाख, चौथी पृथ्वी में दस __ लाख, पांचवीं पृथ्वी में तीन लाख,
छट्ठी पृथ्वी में निन्यानवे हजार नौ सौ पंचानवे और सातवीं पृथ्वी में पांच अनुत्तर नरकावास ।
१४३. सत्तमाए णं पुढवीए केवइयं सप्तम्यां पृथिव्यां कियत् अवगाह्य १४३. सातवीं पृथ्वी में कितने नरकावास हैं ओगाहेत्ता केवइया णिरया कियन्तो निरयाः प्रज्ञप्ताः ?
और कितने क्षेत्र का अवगाहन करने पण्णत्ता?
पर प्राप्त होते हैं ? गोयमा! सत्तमाए पुढवीए गौतम ! सप्तम्यां पृथिव्यां अष्टोत्तर- गौतम ! सातवीं पृथ्वी का बाहल्य एक अठत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए योजनशतसहस्रबाहल्यायां उपरि
लाख आठ हजार योजन प्रमाण है। उरि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई अद्धत्रिपञ्चाशत् योजनसहस्राणि
उसमें ऊपर से साढ़े बावन हजार ओगाहेत्ता हेद्रा वि अद्धतेवणं अवगाह्य अधोऽपि अर्द्धत्रिपञ्चाशत
योजन अवगाहित कर तथा नीचे से जोयणसहस्साई वज्जेता मज्झे योजनसहस्राणि वर्जयित्वा मध्ये त्रिष
साढ़े बावन हजार योजन वजित कर तिसु जोयणसहस्सेसु, एत्थ गं योजनसहस्रेषु, अत्र सप्तम्यां पृथिव्यां
तथा मध्य के तीन हजार योजन में सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच नरयिकाणां पञ्च अनुत्तराः महामहान्तः
सातवीं पृथ्वी के नैरयिकों के अनुत्तर अणुत्तरा महइमहालया महानिरया महानिरया: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-काल:
तथा अत्यन्त विशाल पांच महानरकापण्णता, तं जहा--काले महाकाले महाकाल: रौरवं महारौरवं अप्रतिष्ठानं
वास हैं, जैसे—काल, महाकाल, रौरव, रोरुए महारोरुए अप्पइदाणे नामं नाम पञ्चमकम् । ते नरका: वत्ताश्च
महारौरव और अप्रतिष्ठान । उनमें पंचमए । ते गं नरया वटटेय त्र्यनाश्च अधःक्षुरप्र-संस्थान-संस्थिताः
रौरव नरकावास वृत्त और शेष चार तंसा य अहे खुरप्प-संठाण-संठिया नित्यान्धकारतमसा: व्यपगतग्रह-चंद्र
त्रिकोण हैं। वे नीचे खुरपे की आकृति णिच्चंधयारतमसा ववगयगहचंदसूर-नक्षत्र-ज्यौतिषपथाः मेद-वसा-पूय
वाले हैं। वे निरन्तर अन्धकार से सूर-णक्खत्त-जोइसपहा भेद-वसा
तमोमय, ग्रह-चन्द्र-सूर्य-नक्षत्र और
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