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समवानो
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प्रकीर्णक समवाय : सू० ११०-११२
एवामेव सपुव्वावरेणं सत्त एवमेव सपर्वापरेण सप्तपरिकर्माणि परिकम्माइं तेसीति भवंतीति- त्र्यशीतिः भवन्तीत्याख्यातानि । मक्खायाइं । सेत्तं परिकम्मे। तदेतत् परिकर्म।
त्रैराशिक-तीन नय वाला है। इस प्रकार कुल मिलाकर इन सात परिकर्मों के तिरासी भेद होते हैं। यह परिकर्म
११०. से कि तं सुत्ताई? अथ कानि तानि सूत्राणि ? ११०. सूत्र क्या है ? सुत्ताइं अट्ठासोतिभवंतीति- सूत्राणि
अष्टाशीतिः सूत्र अट्ठासी हैं, ऐसा कहा गया है, मक्खायाइं तं जहाभवन्तीत्याख्यातानि, तद्यथा
जैसेउज्जुगं, परिणयापरिणयं, ऋजुकं, परिणतापरिणतं, बहुभंगिकं, १. ऋजुक १२. नंद्यावर्त बहुभंगिय, विजयचरियं, अणंतरं, विजयचरित, अनन्तरं, परम्परं, सत्, २. परिणतापरिणत १३. बहुल परंपरं, सामाणं, संजूह, भिण्णं, संयूथं, भिन्न, यथात्यागः, सौवस्तिकं ३. बहुभंगिक १४. पृष्टापृष्ट आहच्चायं, सोवत्थियं घंट, घण्टं, नन्द्यावतं, बहुलं, पृष्टापृष्टं, ४. विजयचरित १५. व्यावर्त नंदावत्तं, बहुलं, पुट्ठापुढें, व्यावर्त, एवंभूतं, यावर्त, वर्तमानपदं, ५. अनंतर
१६. एवंभूत वियावत्तं, एवंभूयं, दुआवत्तं, समभिरूढं, सर्वतोभद्रं, पन्यासं, ६. परंपर १७. द्विकावर्त वत्तमाणुप्पयं, समभिरूढं, द्विप्रतिग्रहम् ।
१८. वर्तमानपद सव्वओभई, पण्णासं, दुपडिग्गहं ।
८. संयूथ १६. समभिरूढ़ ६. भिन्न २०. सर्वतोभद्र १०. यथात्याग २१. पन्यास ११. सौवस्तिक घंट २२. द्विप्रतिग्रह।
७. सत्
१११. इच्चेयाइं बावीसं
छिण्णछेयनइयाणि सुत्तपरिवाडीए।
सुत्ताई इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि १११. ये बाईस सूत्र स्व-समय की परिपाटी ससमय- छिन्नच्छेदनयिकानि स्वसमयसूत्र
(जैनागम पद्धति) के अनुसार छिन्नछेदपरिपाट्या।
नयिक होते हैं।
इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई इत्येतानि द्वाविंशतिः अच्छिपणछेयनइयाणि आजोविय- अच्छिन्नच्छेदनयिकानि सुत्तपरिवाडीए।
सूत्रपरिपाटया।
सूत्राणि आजीविक
ये बाईस सूत्र आजीवक परिपाटी के अनुसार अच्छिन्नछेद-नयिक होते हैं।
ये बाईस सूत्र त्रैराशिक परिपाटी के अनुसार त्रिक-नयिक होते हैं।
इच्चेयाई बावीस सुत्ताई इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि तिकनइयाणि तेरासियसुत्त- त्रिकनयिकानि त्रैराशिकसूत्रपरिपरिवाडीए।
पाट्या। इच्चेयाई बावीस सुत्ताई इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि चउक्कनइयाणि ससमयसुत्त- चतुष्कनयिकानि स्वसमयसूत्रपरि- परिवाडीए।
पाट्या।
ये बाईस सूत्र स्व-समय परिपाटी के अनुसार चतुष्क-नयिक होते हैं ।
इस प्रकार कुल मिलाकर अट्ठासी सूत्र होते हैं । यह सूत्र है।
एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीति एवमेव सपूर्वापरेण अष्टाशीतिः सुत्ताइं भवतीतिमक्खायाणि। सूत्राणि भवन्तीति आख्यातानि । तानि सेत्तं सुत्ताई।
एतानि सूत्राणि। ११२. से कि तं पुव्वगए ? अथ किं तत् पूर्वगतम् ?
११२. पूर्वगत क्या है ?
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