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समवाश्रो
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समवाय ६२ : टिप्पण
सोलह और व्यवहार सूत्र में चार - इस प्रकार बासठ प्रकार हो जाते हैं । यद्यपि ये चारित्र प्रतिमाएं हैं किन्तु ये विशिष्ट श्रुतवान् मुनि के होती हैं, इसलिए इन्हें 'श्रुतप्रतिमा' कहा गया, ऐसा सम्भव है । चारित्रसमाधिप्रतिमा के पांच प्रकार हैंसामायिक चारित्रप्रतिमा, छेदोपस्थापनीय चारित्रप्रतिमा, परिहारविशुद्ध चारित्रप्रतिमा, सूक्ष्मसंपराय चारित्रप्रतिमा और यथाख्यात चारित्रप्रतिमा ।
उपधानप्रतिमा के दो प्रकार हैं- भिक्षप्रतिमा और उपासकप्रतिमा ।
भिक्षु प्रतिमाएं बारह हैं ( समवाय १२ ) । उपासक प्रतिमाएं ग्यारह हैं ( समवाय ११ ) ।
विवेकप्रतिमा और प्रतिसंलीनताप्रतिमा का कोई प्रकार भेद नहीं है । एकविहारप्रतिमा बारह भिक्षुप्रतिमा के अन्तर्गत गिनी गई है, इसलिए वह यहां पृथक् विवक्षित नहीं है । प्रतिमाओं का कुल योग इस प्रकार है' -
समाधिप्रतिमा – ६२ + ५=६७ उपधानप्रतिमा - १२+११=२३ विवेकप्रतिमा प्रतिसंलीनताप्रतिमा
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कुल योग ९२
इस प्रसंग में ठाणं २ / २४३-२४८ के आलापक और उनके टिप्पण पृष्ठ १३२-१३७ द्रष्टव्य हैं ।
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