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________________ समवाश्रो २८8 समवाय ६२ : टिप्पण सोलह और व्यवहार सूत्र में चार - इस प्रकार बासठ प्रकार हो जाते हैं । यद्यपि ये चारित्र प्रतिमाएं हैं किन्तु ये विशिष्ट श्रुतवान् मुनि के होती हैं, इसलिए इन्हें 'श्रुतप्रतिमा' कहा गया, ऐसा सम्भव है । चारित्रसमाधिप्रतिमा के पांच प्रकार हैंसामायिक चारित्रप्रतिमा, छेदोपस्थापनीय चारित्रप्रतिमा, परिहारविशुद्ध चारित्रप्रतिमा, सूक्ष्मसंपराय चारित्रप्रतिमा और यथाख्यात चारित्रप्रतिमा । उपधानप्रतिमा के दो प्रकार हैं- भिक्षप्रतिमा और उपासकप्रतिमा । भिक्षु प्रतिमाएं बारह हैं ( समवाय १२ ) । उपासक प्रतिमाएं ग्यारह हैं ( समवाय ११ ) । विवेकप्रतिमा और प्रतिसंलीनताप्रतिमा का कोई प्रकार भेद नहीं है । एकविहारप्रतिमा बारह भिक्षुप्रतिमा के अन्तर्गत गिनी गई है, इसलिए वह यहां पृथक् विवक्षित नहीं है । प्रतिमाओं का कुल योग इस प्रकार है' - समाधिप्रतिमा – ६२ + ५=६७ उपधानप्रतिमा - १२+११=२३ विवेकप्रतिमा प्रतिसंलीनताप्रतिमा Jain Education International — १ १ कुल योग ९२ इस प्रसंग में ठाणं २ / २४३-२४८ के आलापक और उनके टिप्पण पृष्ठ १३२-१३७ द्रष्टव्य हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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