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________________ समवाश्रौ ३. उन्नासी हजार योजन ( एगुणासीइं जोयणसहस्साई साइरेगाई) । छठी पृथ्वी का बाल्य एक लाख सोलह हजार योजन का है। उसका बहुमध्यदेशभाग अट्ठावन हजार योजन का है। छठे घनोदधि का बाहुल्य बीस हजार योजन का है। दोनों को मिलाने से ( ५८००० + २०००० ) = अठत्तर हजार योजन होते हैं । वृत्तिकार ने यहां तीन मत प्रस्तुत किए हैं १. सूत्रकार ने संभवत: छठे घनोदधि का बाहुल्य इक्कीस हजार योजन माना हो । २. ग्रन्थान्तरों के मतानुसार यह अन्तर पांचवीं पृथ्वी का होना चाहिए, क्योंकि पांचवीं पृथ्वी का बहुमध्यदेशभाग उनसठ हजार योजन का है और पांचवें घनोदधि का बाहुल्य बीस हजार योजन का है। २६५ १ समवायांगवृत्ति पत्र ८२ । २. वही, पन ८२ । Jain Education International ३. यहां छठी पृथ्वी का बहुमध्यदेशभाग एक हजार योजन अधिक ( अर्थात् उनसठ हजार योजन ) विवक्षित है । 'बहु' शब्द इस आशय का सूचक माना जा सकता है । " ४. कुछ अधिक उन्नासी हजार योजन ( एगूणासीइं जोयणसहस्साइं साइरेगाई) जम्बूद्वीप की जगती की चारों दिशाओं में चार द्वार हैं- पूर्व में विजय, पश्चिम में वैजयन्त, उत्तर में जयन्त और दक्षिण में अपराजित । प्रत्येक द्वार का विष्कंभ चार-चार योजन का है और प्रत्येक द्वार की द्वार-शाखा दो-दो गाउ की है । जम्बूद्वीप की परिधि ३१६२२७ योजन ५ कोश १२८ धनुष्य और १३-३- अंगुल की है। इसमें से चारों द्वारों तथा द्वारशाखाओं का विष्कंभ (४÷४४) १८ योजन निकाल लेने पर शेष ३१६२०६ योजन रहे। इनको चार से प्राजित करने पर ७६०५२ योजन आता है । यही उनका साधिक अन्तर हैं । समवाय ७६ : टिप्पण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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