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________________ ७७ सत्तत्तरिमो समवा : सतहत्तरवां समवाय मूल संस्कृत छाया १. भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी भरतो राजा चातुरन्तचक्रवर्ती सत्तर पुव्वसय सहस्साई सप्तसप्तति पूर्वंशतसहस्राणि कुमारकुमारवासमभावसित्ता महाराया- वासमध्युष्य महाराजाभिषेकं संप्राप्तः । भिसेयं संपत्ते । २. अंगवंसाओ णं सतर्त्तारं रायाणो अङ्गवंशात् सप्तसप्ततिः राजानः मुण्डाः मुंडे भवित्ता णं अगाराओ भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजिताः । अणगारिअं पव्वइया | ३. गद्दतोयसियाणं देवाणं सतर्त्तारं गर्द्दतोयतुषितयोर्देवयोः सप्तसप्ततिः देवसहस्सा परिवारा पण्णत्ता । देवसहस्राणि परिवाराः प्रज्ञप्ताः । ४. एगमेगे णं मुहते सत्ततर लवे एकैक: मुहूर्तः सप्तसप्ततिं लवान् लवग्गेणं पण्णत्ते । लवाग्रेण प्रज्ञप्तः । टिप्पण Jain Education International हिन्दी अनुवाद १. चातुरंत चक्रवर्ती राजा भरत सतहत्तर लाख पूर्वो तक' कुमार अवस्था में रहने के पश्चात् महाराजा के अभिषेक को प्राप्त हुए थे। २. अंग वंश ( अंग राजा की सन्तति) के सतहत्तर राजा मुंड होकर अगार अवस्था से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुए थे । For Private & Personal Use Only ३, गर्दतोय और तुषित - इन दो देवनिकायों का परिवार सतहत्तर हजार देवों का है । १. सतहत्तर लाख पूर्वी तक ( सतर्त्तार पुव्वसयसहस्साई ) राजा भरत भगवान् ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र थे । जब भगवान् ऋषभ का आयुष्य छह लाख पूर्व का हुआ, तब भरत का जन्म हुआ। भगवान् ऋषभ तिरासी लाख पूर्व की अवस्था में दीक्षित हुए। उनके प्रव्रजित होने पर भरत राजा बने । उस समय उनका आयुष्य सतहत्तर लाख पूर्व का था । ४. प्रत्येक मुहूर्त्त लव प्रमाण से सतहत्तर लव' का होता है । १. समवायांगवृत्ति पत्र ८० : तत्र मरतचक्रवर्ती ऋषमस्वामिन: षट्सु पूर्वलक्षेष्यतीतेषु जात:, प्रशीतितमे च तत्रातीते भगवति च प्रव्रजिते राजा संवृत्तः ततश्च त्यशीत्याः षट्सु निष्कषितेषु सप्तसप्ततिस्तस्य कुमारवासो भवतीति । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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